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________________ तत्त्वार्थसूत्रे कारत्वव्यवहारो भवति, वस्तुतस्तु आकारो विकल्प तेन सहवर्तते इति साकारः सविकल्पः तद्विपरीतोऽनाकारः निर्विकल्पः इति भावः, तथा च सकारकं विशिष्टवैशिष्टयावगाहिज्ञानं सविकल्पकं साकारं व्यपदिश्यते प्रकारतादिशून्यं “किंस्वित्' इत्येवमालोचनमात्रं निर्विकल्पकमनाकारमुच्यते इति फलितम् ॥ तत्र साकारात्मको ज्ञानोपयोगोऽष्टविधः प्रज्ञप्तः तद्यथा--मतिज्ञानोपयोगः श्रुतज्ञानोपयोगः २ अवधिज्ञानोपयोगः ३ मनः पर्यवज्ञानोपयोगः ४। केवलज्ञानोपयोगः ५। मत्यज्ञानोपयोगः ६। श्रुता ज्ञानोपयोगः ७ विभङ्गज्ञानोपयोगश्चेति ८। अनाकारात्मको दर्शनोपयोगश्चतुर्विधः प्रज्ञप्तः । तद्यथा चक्षुर्दर्शनोपयोगः १। अचक्षुर्दर्शनोपयोगः २, अवधिदर्शनोपयोगः ३ केवलदर्शनोपयोगश्च ४।इति।। उक्तञ्च-प्रज्ञापनायां २९ पदे कतिविहे णं भंते ! उवओगे पण्णत्ते ! गोयमा ! दुविहे उवओगे पण्णत्ते, तं जहा-सागारोवओगे अणागारोवओगे य सागारोवओगे णं भंते! कतिविहेपण्णत्ते गोयमा ! अविहेपण्णत्ते त जहा मइ णाणोवओगे, सुअणाणोवओगे, ओहिणाणोवओगे, सुअअण्णाणोवओगे, विभंगणाणोवओगे य अणागारोवओगे णं भंते ! कतिविहे ? गोयमा ? चउविहे तं जहाचक्खूदंसणोवओगे अचक्खूसणोवओगे ओहि । दंसणोवओगे ओहिदंसणोवओगे केवलदंसणोव ओगेय । इति ।। कतिविधः खलुभदन्त १ उपयोगः प्रज्ञप्तः २ गौतम १ द्विविध उपयोगः प्रज्ञप्तः, तद्यथा साकारोपयोगः अनाकारोपयोगश्च साकारोपयोगः खलु भदन्त कतिविधः प्रज्ञप्तः ? ज्ञानोपयोग साकार और दर्शनोपयोग निराकार कहा गया है। इन्द्रियों की प्रणाली द्वारा विषय के आकार में परिणाम होने के कारण ज्ञान साकार कहा जाता है। वास्तव में आकार का अर्थ है-विकल्प । जो ज्ञान विकल्प सहित होता है वह सविकल्प कहलाता है । जो उससे विपरीत अर्थात् निर्विकल्प हो वह अनाकार कहलाता है। अतएव प्रकार युक्त विनिष्ट की लिशिष्टता को जमाने वाला ज्ञान सविकल्प अथवा साकार कहा आता हैं और ओ प्रकारता धे शून्य हो 'कुछ है' इस प्रकार का आभास मात्र ही हो वह निर्विकल्प अथवा अनाकार कहलाता है । ___साकारोपयोग आठ प्रकार का है, यथा -- (१)मतिज्ञानोपयोग)२)श्रुतज्ञानोपयोग(३) (अवधिज्ञानोपयोग(४)मनःपर्यवज्ञानोपयोग(५)केवलज्ञानोपयोग(६)सत्यज्ञानोपयोग(७)श्रुताज्ञानोपयोग(८)विभंगज्ञानोपयोग। __ अनाकार दर्शनोपयोग के चार भेद हैं-(१)चक्षुदर्शन(२)अचक्षुदर्शन(३)अवधिदर्शन (५)केवल दर्शन के भेद से(१)चक्षुदर्शनोपयोग(२)अचक्षुदर्शनोपयोग(३)अवधिदर्शनोपयोग और (४)केवलदर्शनोपयोग । प्रज्ञापनासूत्र के २९ वें पद में कहा है--- भगवन् उपयोग कितने प्रकार का कहा है ? उत्तर- उपयोग दो प्रकार का कहा है,-साकारोपयोग और अनाकारोपयोग । प्रश्न-भगवन साकारोपयोग कितने प्रकार के हैं ? શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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