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________________ ૯૭૨ तत्त्वार्थसूत्रे धातकीखण्डे पश्चिमाधैं खलु मन्दरस्य पर्वतस्य-उत्तरदक्षिणे खलु-द्वौ वर्षों प्रज्ञप्तौ, बहुसमतुल्यौ यावद्-भरतश्चैव-ऐरवतश्चैव....इत्यादि । ततश्चा' तत्रैव स्थानाङ्गे २-स्थाने ३-उद्देशके ९३.सूत्रे चोक्तम्-"पुक्खरवरदीवड्ढे पुरथिमद्धेणं मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरदाहिणेणं दो वासा पण्णत्ता, वहुसमतुल्ला जाव-भरहे चेव, एरवए चेव, तहेव जाव-दो कुडाओ पण्णत्ता-” इति । पुष्करवरढीपार्धे पौरस्त्यार्धे खलु मन्दरस्य पर्वतस्योत्तरदक्षिणे खलु द्वौ वर्षों प्रज्ञप्तौ, बहुसमतुल्यौ यावद्-भरतश्चैव, ऐरवतश्चैव, तथैव-यावद् द्वौ कुरू प्रज्ञप्तौ-इति ॥३१॥ 'मूलसूत्र- 'माणुसुत्तराओ पुव्वं मणुआ ते दुविहा आरिया मिलक्खू य-" ॥३२॥ छोया -"मानुषोत्तरात्पूर्वमनुष्याः, ते द्विविधाः, आर्या-म्लेच्छाश्च-" ३२॥ तत्त्वार्थदीपिका-पूर्व धातकीखण्डे पुष्कारार्धेच द्वौ द्वौ भरतादिवर्षी हिमवदादिवर्षधरपर्वतौ च प्ररूपितो, तत्र-सम्पूर्ण पुष्करद्वीपमनुक्त्वा पुष्करार्धे एव तेषां द्विरावृत्तत्वाभिधानेकारणमाह- "माणुसुत्तराओ पुव्वं मणुआ, ते दुविहा आरिया मिलक्खय -"इति । मानुषोत्तरात् पुष्करद्वीपबहुमध्यभागवर्तिनो मानुषोत्तरशैलात् पूर्वमेव मनुष्याः सन्ति, न ततो बहिर्भागे, तथाच मानुषोत्तरशैलेन पुष्करद्वीपस्य विभक्तार्धत्वात् तस्य पुष्करद्वीपस्य पूर्वाद्देष्वेव मनुष्या भवन्ति, न तु तस्य बहिरर्धे इति फलितम् । ते मनुष्या द्विविधाः द्विप्रकारकाः सन्ति, आर्याश्च म्लेच्छाश्चेति भावः ॥३२॥ हैं, वे हैं भरत और ऐरबत, इत्यादि....धातकीखण्ड द्वीप के पश्चिमार्ध में मेरुपर्वत से उत्तर और दक्षिण में दो क्षेत्र कहे गए हैं, जो बिल्कुल एक समान हैं, वे हैं भरत और ऐरवत; इत्यादि । आगे स्थानांगसूत्र में ही दूसरे स्थान के तीसरे उद्देशक के सूत्र ९३ में कहा है'पुष्कर वर द्वीप के पूर्वार्ध भाग में मेरुपर्वत से उत्तर दक्षिण में दो क्षेत्र कहे गए हैं, जो बिल्कुल एक जैसे हैं, वे हैं - भरत और ऐरवत । इत्यादि सब पूर्ववत् ही कह लेना चाहिए यावत् दो कुरु कहे गए हैं' ॥३१॥ __'माणुसुत्तराओ षुव्वं' इत्यादि सू० ३२ सूत्रार्थ-मनुष्य मानुषोत्तर पर्वत से पहले-पहले ही रहते हैं और वे दो प्रकार के होते हैं-आर्य और म्लेच्छ ॥३२॥ तत्त्वार्थदीपिका-इससे पूर्व धातकीखण्ड और पुष्करार्ध द्वीप में दो-दो भरत आदि क्षेत्र और दो-दो हिमवन्त आदि पर्वत हैं, यह प्रतिपादन किया गया है । मगर सम्पूर्ण पुष्कर द्वीप में भरत आदि क्षेत्रों का तथा हिमवन्त आदि पर्वतों का कथन न करके 'पुष्करार्ध' में जो कथन किया गया है, इसका कारण क्या है ? यह बतलाने के लिए कहते हैं। पुष्कर द्वोप के बीचों-बीच स्थित मानुषोत्तर पर्वत से पहले-पहले ही मनुष्यों का बास है उससे बाहर मनुष्य नहीं होते, मानुषोत्तर पर्वत के द्वारा पुष्कर द्वीप के दो विभाग हो गए શ્રી તત્વાર્થ સૂત્રઃ ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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