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________________ ६७० www तत्त्वार्थसूत्रे भवेयुरिति जम्बूद्वीपातिरिक्तेषु चतुषु महाविदेहेषु चत्वारो देवकुरवः-चत्वार उत्तरकुरवश्चेति धातकोखण्डे पुष्करर्धेचाऽष्टौ सन्ति तत्र-द्वाभ्यां खल-इश्वाकारपर्वताभ्यां दक्षिणोत्तरायताभ्यां लवणोदधि-कालोदधिवेदिकास्पृष्टकोटीभ्यां विभक्तः पूर्वापरों धातकीखण्डो वर्तते तत्र-पूर्वस्याऽपरस्य च धातकीखण्डस्य मध्ये द्वौ मन्दराचलौ वर्तेते ।। तयोरुभयतो भरतादीनि क्षेत्राणि सन्ति, हिमवदादयोवर्षधरपर्वताश्च सन्ति, एवं रीत्या द्वौ भरतवर्षी द्वौ हिमवन्तौ, द्वौ हैंमवतौ वर्षों द्वौ महाहिमवन्तौ,, द्वौ हरिवों - द्वौ निषधपर्वतो, द्वौ महाविदेहौ-द्वौ नीलवन्तौ, द्वौ रम्यकवौ--द्वौ रुक्मिपर्वतौ, द्वौ हैरण्यवतौ द्वौ शिखरिपवतो, द्वौ-एरवतौ च वर्तेते । चतुर्थमहाविदेहेषु--द्विसंख्यका देवकुरवः द्विसंख्यका उत्तरकुरवश्च सन्ति एवं-- जम्बूद्वीपहिमवदादीनां वर्षघरपर्वतानां विष्कम्भापेक्षया--द्विगुणविष्कम्भो धातकीखण्डवर्तिनां हिमवदादीनां वर्षधराणामवगन्तव्यः ते खलु वर्षधराश्चक्रारवदवस्थिताः सन्ति, भरतादिक्षेत्राणि चा-ऽरविवरसंस्थानानि सन्ति, । जम्बूवृक्षःस्थित स्तत्र-धातकीखण्डे-धातकीवृक्षः सपरिवारः स्थितः, अतएव धातकोखण्ड इति धातकीवृक्षयोगाद् व्यपदिश्यते । तथाच-धातकीखण्डनामद्वीपः प्रतीतः, महाविदेहों में ही हैं, अतः जम्बूद्वीप के महाविदेह को छोड़कर शेष जो चार महाविदेह हैं, उनमें चार देवकुरु हैं और चार उत्तरकुरु हैं । इस प्रकार दोनों कुरु मिलकर धातकीखण्ड और पुष्कराध क्षेत्र में आठ कुरु हैं । जम्बूद्वीप के दोनों कुरु सम्मिलित कर लिये जाएँ तो इनकी संख्या दस हो जाती हैं-पॉच देवकुरु और पोंच उत्तरकुरु । दक्षिण और उत्तर में लम्बे, अपने छोरों से लवणोदधि और कालोदधि समुद्रों का स्पर्श करने वाले दो इषुकार पर्वतों से धातकोखण्ड द्वीप पूर्व और पश्चिम में विभक्त है । इसके पूर्व भाग में ओर पश्चिम भाग में एक-एक मेरु पर्वत है । ___ उसके उक्त दोनो विभागों में भरत आदि सभी पूर्वोक्त क्षेत्र हैं और हिमवन्त पर्वत हैं। इस कारण दो भरतक्षेत्र, दो हिमवन्त पर्वत, दो हैमवत क्षेत्र, दो महाहिमवान् पर्वत, दो हरिवर्ष, दो निषध पर्वत, दो महाविदेह, दो नोलवन्त पर्वत, दो रभ्यकवर्ष, दो रुक्मी पर्वत दो हैरण्यवत क्षेत्र, दो शिखरि पर्वत और दो ऐरवतवर्ष हैं । चौथे महाविदेह क्षेत्र में दो देवकुरु और दो उत्तरकुरु हैं। इस प्रकार जम्बूद्वीप में जो हिमवन्त आदि वर्षधर पर्वत हैं, उनके विस्तार से धारतकीखंड द्वीप में स्थित हिमवन्त आदि पर्वतों का विस्तार दुगुना-दुगुना हैं । वे वर्षधर पर्वत चक्र (पहिया) के आकार में स्थित हैं और भरत आदि क्षेत्र उनके आरों के आकार के हैं। जम्बूद्वीप में जहाँ जम्बूवृक्ष है धातकीखंड में वहाँ धातकीखंड वृक्ष परिवारसहित स्थित है । धातको नामक वृक्ष के कारण ही वह द्वीप धातकी खंड कहलाता है । धातकी શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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