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तत्त्वार्थसूत्रे लक्षणेषु क्षेत्रेषु मनुष्याः संख्येयकालस्थितिका भवन्ति तत्र-सुषमदुष्षमाकालान्तिमकालसदृशस्य कालविशेषस्य सदावस्थितत्वात् मनुष्याः पञ्चधनुःशतोत्सेधाः नित्याहाराः उत्कृष्टेन एकपूर्वकोटिस्थितिकाः जघन्येनाऽन्तर्मुहूर्तायुषो भवन्ति, विगतो-विनष्टो देहः शरीरं मुनीनां येषु ते विदेहाः प्रायेण-विदेहवर्षाणां मुक्तिप्राप्तिहेतुत्वात् तेषु विदेहेषु पञ्चानां मेरूणां सम्बन्धिनः पञ्च-पञ्चपूर्वाऽपर भेदवन्तोऽपि विदेहा पञ्चमहाविदेहा आख्यायन्ते इति ।
उक्तञ्च- जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तौ ४-वक्षस्कारे "जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरदाहिणेणंवासा पण्णत्ता, हिमवए चेव-हेरण्णवए चेव, हरिवासेचेव-रम्मगवासेचेव-देवकुरा चेव उत्तरकुरा चेव एगं पलियोवमं ठिई पण्णत्ता, दोपलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता, तिण्णि पलियोवमाईठिईपण्णत्ता, महाविदेहे मणुआणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ! गोयमा ! जहण्णेण अंतोमुहत्तं उक्कोसेण पुचकोडी आउयं पालेंति-" इति ।
छाया-जम्बूद्वीपे-द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य उत्तरदक्षिणेन द्वौ वर्षी प्रज्ञप्तौ, हैमवतश्चैव-हैरण्यवतश्चैव, हरिवर्वश्चैव-रम्यकवर्षश्चैव, देवकुरवश्चैव-उत्तरकुरवश्चैव, एक पल्योपमं स्थितिः प्रज्ञप्ता, द्वेपल्योपमं स्थितिः प्रज्ञप्ता, त्रीणि पल्योपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता, महाविदेहे मनुष्याणां कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ! गौतम ! जघन्येना-ऽन्तर्मुहूर्त्तम् , उत्कृष्टेन पूर्वकोटीः आयुष्यं पालयन्ति-इति ॥३०॥ संख्यात काल की आयु वाले होते हैं । वहाँ सदा दुष्षम सुषम काल के प्रारम्भ के समय जैसा काल बना रहता है, अतः वहाँ के मनुष्यों की ऊँचाई पाँच सौ धनुष की होती है, वे प्रतिदिन भोजन करते हैं और उन की उत्कृष्ट स्थिति एक करोड़ पूर्व की तथा जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की होती हैं।
जिस क्षेत्र में मुनिओं का देह विगत-विनष्ट होता है अर्थात् जहाँ सदैव धर्म-शासन की प्रवृत्ति रहने से तथा तीर्थकरों की विद्यमानता होने से मुनिजन विदेह-अवस्था प्राप्त करते हैं, वह क्षेत्र भी विदेह कहलाता है। यद्यपि मध्य में मेरु पर्वत के अवस्थित होने से विदेह होने से क्षेत्र पूर्व, अपर आदि भागों में विभक्त हैं, तथापि सामान्य रूप से एक ही है । जम्बूद्वीप में एक धातकीखण्ड द्वीप में दो तथा पुष्करार्ध में दो विदेह होने के कारण पाँचमहा विदेह क्षेत्र कहेजाते हैं ।
___ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के चौथे वक्षस्कार में कहा है-जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत से उत्तर और दक्षिण दिशा में दो वर्ष कहे गये हैं-हैमवन्त और हैरण्यवत, हरिवर्ष और रम्यक वर्ष, देव-कुरु और उत्तरकुरु । उनमें एक पल्योपम की स्थिति कही है, दो पल्योपम की स्थिति और तीन पल्योयम की स्थिति कही है। प्रश्न-भगवन् महविदेह में मनुष्यों की कितनी स्थिति कही है।
उत्तर-गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त प्रमाण और उत्कृष्ट करोड़ पूर्व की आयु कही गई है ॥३०॥
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧