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________________ तत्वार्थसूत्रे भवन्ति । उत्सर्पिण्या द्वितीयकालस्याऽऽदौ विंशतिवर्षायुषो मनुष्याः सार्धहस्तत्रयशरीरोत्सेधा भवन्ति उत्सर्पिण्यास्तृतीयकालस्यादौ विंशत्यधिकशतवर्षायुषो मनुष्याः सप्तहस्तशरीरोत्सेधा भवन्ति । उत्सर्पिण्याश्चतुर्थकालस्यादौ कोटिपूर्वायुषो मनुष्याः पञ्चशतधनुःशरीरोत्सेधा भवन्ति । उत्सर्पिण्याः पञ्चमकालस्यादौ मनुष्याः एकपल्योपमायुष्का एकक्रोशशरीरोत्सेधा भवन्ति । उत्सर्पिण्याः षष्ठकालस्यादौ मनुष्या द्विपल्योपमायुप्काः द्विक्रोशशरीरोत्सेधा भवन्ति, अस्य षष्ठ कालस्यान्ते तु मनुष्या स्त्रिपल्योपमायुष्काः त्रिशरीरोत्सेधाश्च भवन्तीति विशेषः । चतुर्थ्या-पञ्चभ्यां षष्ठ्या श्चोत्सर्पिण्याम् एकापि 'ईति' न भवतीति बोध्यम् । उक्तञ्च स्थानाङ्गे २- स्थाने ८९-सूत्रे-"जंबुद्दीवे दीवे दोसु कुरासु मणुया सया सुसमसुसम मुत्तमिटिं पत्ता पच्चणुभवमाणा विहरंति, तं जहा-देवकुराए चेव उत्तरकुराए चेव । जंबुद्दीवे दीवे दोसु वासेसु मणुया सया सुसम मुत्तमिड्ढिपत्ता पच्चणुब्भवमाणा विहरंति, तं जहा-हरिवासे चेव, रंमगवासे चेव ।। जंबुद्दीवे दीवे दोसु वासेसु मणुया सया सुसमदुसम मुत्तममिदि पत्ता पच्चणुब्भवमाणा विहरंति, तं जहा-हेमवएचेव-एरण्णवएचेव । जंबुद्दीवे दीवे दोसु खित्तेसु मणुया सया दुसमसुसम मुत्तममिइडिं पत्ता पच्चणुब्भवमाणा विहरंति, तं जहा-पुव्वविदेहे चेव अवरविदेहे चेव जंबुद्दीवे दीवे दोसु वासेसु मणुया छव्विहपि कालं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति, तं जहा-भरहे चेव, एरवए चेव-, इति । जम्बूद्वीपे द्वीपे द्वयोः कुर्वोः मनुष्या सदा सुषमसुषमा मुत्तमद्धि प्राप्य प्रत्यनुभवन्तो विहरन्ति, तद्यथा-देवकुरौ चैव । उत्तरकुरौचैव । जम्बूद्वीपे द्वीपे द्वयोवर्षयोःकाल के तीसरे आरे की आदि में मनुष्य एक सौ बीस वर्ष की आयु वाले और सात हाथ ऊँचे शरीर वाले होते हैं। उत्सर्पिणी के चौथे आरे की आदि में मनुष्य करोड़ पूर्व की आयु और पाँच सौ धनुष की शरीर की अवगाहना वाले होते हैं ।। उत्सर्पिणी के पांचवें आरे को आदि में मनुष्यों की आयु एक पल्योपम की और शरीर की ऊँचाई एक कोस की होती है उत्सर्पिणी काल के छठे आरे की आदि में दो पल्योपम को आयु होती है और दो कोस का शरीर होता है । इस छठे आरे के अन्त में मनुष्यों की आयु तीन पल्योपम की और शरीर की ऊँचाई तीन कोस की होती है। उत्सर्पिणी काल के चौथे, पाँचवें और छठे आरे में एक प्रकार की भी ईति नहीं होती-मनुष्य सब प्रकार के उपद्रवों से रहित होते हैं। स्थानांगसूत्र के द्वितीय स्थान के सूत्र ८९ में कहा है जम्बूद्वीप नामक द्वीप में दोनों कुरु क्षेत्रों में अर्थात् देवकुरु और उत्तरकुरु में मनुष्य सुषमसुषमा रूप उत्तम ऋद्धि को प्राप्त करके उसका उपभोग करते हुए विहार करते है । जम्बूद्वीप के दो वर्षों में अर्थात् શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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