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तत्वार्थ सूत्रे
तुर्भेदः कषायः ४ स्त्री पुंनपुंसकभेदात् त्रिभेदं वेदलक्षणं लिङ्गम् ३ एकविघा मिथ्यादर्शनरूपा मिथ्यादृष्टिः १ अज्ञानञ्चैकविधम् १, अविरतिलक्षणमसंयतत्वञ्चैकविधम् १ कृष्णनीलकापोत तेजः पद्मशुक्लभेदात् षड्विधा लेश्या ६ इत्येवमेकविंशति र्भेदा औदयिकभावाः, औपशमिकभावस्य नवभेदाः सन्ति ज्ञानदर्शनदानलाभभोगोपभोगवीर्यसम्यक्त्वयथाख्यातचारित्रभेदात्, क्षायोपशमिकरूपमिश्रभावस्याष्टादशभेदा यथा मतिश्रुतावधिमनः पर्यवचतुर्विधं ज्ञानम् ४ त्रिविधमज्ञानं ३, मत्यज्ञानश्रुताज्ञानविभङ्गज्ञानभेदात् चक्षुरचक्षुरवधिदर्शनभेदात् त्रिविधं दर्शनम् ३ दानलाभ भोगोपभोगवीर्यलब्धिभेदात् पञ्चविधा लब्धयः ५ सम्यक्त्व १ चारित्रम् १ संयमासंयमचे १ त्येवमष्टाद शभेदाः जीवत्वभव्यत्वाभव्यत्वभेदात् त्रिविधः पारिणामिकः सान्निपानिको भाव बहुभेदः ॥सू.१५ ॥
निर्युक्तिः — पूर्वसूत्रे औदयिकौपशमिकक्षायिकादिषड्भावाः स्वरूपतो लक्षणतश्च प्ररूपिताः सम्प्रति तेषामेव विभागप्रदर्शनार्थमाह - "एगवीसइ " - इत्यादि, तत्र 'जहाकमं' यथाक्रमम्-क्रमानुसारेण औदयिकस्य भावस्य एकविंशतिभेदाः सन्ति, औपशमिकस्य द्वौ भेदौ, क्षायिकस्यनवभेदाः क्षायोपशमिकस्याष्टादशभेदाः, पारिणामिकस्य त्रयो भेदाः, सान्निपातिकस्य च भावस्य नैक भेदाः– अनेकभेदाः सन्ति तत्र जीवस्य भवनलक्षण - परिणतिविशेषाणां षड्भावानां मध्ये (९-१२) स्त्रीवेद' पुरुषवेद और नपुंसकवेद के भेद से तीन प्रकार का वेद (लिंग), (१२) मिथ्यादर्शन, (१३) अज्ञान (१४) अविरति (१५) असिद्धत्व और (१६-२१) कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या, तेजोलेश्या, पद्मलेश्या, शुक्ललेश्या । ये औदयिकभाव के इक्कीस भेद हैं । औपशामिकभाव के दो भेद हैं— सम्यक्त्व और चारित्र । क्षायिकभाव के नौ भेद इस प्रकार हैं - (१) ज्ञान (२) दर्शन (३) दान (४) लाभ (५) भोग (६) उपभोग (७) वीर्य (८) सम्यक्त्व और ( ९ ) यथाख्यात चारित्र ।
क्षायोपशमिक भाव के अठारह भेद – (१) मतिज्ञान (२) श्रुतज्ञान (३) अवधिज्ञान ( ४ ) मनःपर्यवज्ञान (५) मतिअज्ञान (६) श्रुतअज्ञान (७) विभंगज्ञान (८) चक्षुदर्शनि ( ९ ) अचक्षुदर्शन (१०) अवधिदर्शनि (११) दान (१२) लाभ (१३) भोग (१४) उपभोग (१५) वीर्य, यह पाँच लब्धियाँ (१६) सम्यक्त्व (१७) चारित्र और (१८) संयमासंयम ।
पारिणामिक भाव तीन प्रकार का है - ( १ ) जीवत्व (२) भव्यत्व (३) अभव्यत्व | सान्नि पातिक भाव के बहुत से भेद हैं । इनमें से अन्तिम तीन क्रमशः इष्ट, इष्टतर, और इष्टतम हैं तथा प्रारंभ के तीन अनिष्टतम, अनिष्टतर और अनिष्ट हैं ॥ १५ ॥
तत्वार्थनियुक्ति — पूर्वसूत्र में औदयिक, औपशमिक, क्षायिक आदि छह भावों के स्वरूप और लक्षण बतलाये गये हैं, अब उनके भेद दिखलाने के लिए कहते हैं
औदयिक भाव के इक्कीस, औपशमिक भाव के दो, क्षायिक भाव के नौ, क्षायोपशमिक भाव के अठारह और पारिणामिक भाव के तीन भेद हैं । सान्निपातिक भाव बहुत प्रकार का है । इनमें से जीव के प्रथम औदयिक भाव के इक्कीस मेद कहते हैं - (१-४) चार प्रकार
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧