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________________ दीपिकानियुक्तिश्च अ० ५ सू. २७ चुल्लहिमवदाहिवर्षाणां वर्षधराणां च बाहल्यम् ६५१ तृतीयपञ्चमाः वर्षधराः, द्वितीय-चतुर्थ-षष्ठाः वर्षाश्चोत्तरोत्तरं यथाक्रमं भरतापेक्षया उत्तरोत्तरं द्विगुणद्विगुणविस्ताराः सन्तीति भावः । तथाहि-भरतापेक्षया द्विगुणविष्कम्भो हि क्षुल्लहिमवतो वर्षघरस्य पर्वतस्य वर्तते, क्षुल्लहिमवन्तमपेक्ष्य द्विगुणविष्कम्भो हैमवतवर्षस्य वर्तते । हैमवतस्य द्विगुणविष्कम्भः खलु-महामिवतो वर्षधरपर्वतस्य विद्यते, महाहिमवतो द्विगुणविष्कम्भश्चहरिवर्षस्यास्ति । हरिवर्षस्य द्विगुणविस्तारो निषधवर्षधरस्य वर्तते, निषधापेक्षया-द्विगुणविष्कम्भो महाविदेहस्य वर्तते इति ॥२७॥ तत्त्वार्थनियुक्तिः-पूर्व जम्बूद्वीपान्तर्वर्तिनो भरतवर्षस्य बाहल्यं प्ररूपितम्, सम्प्रति-क्षुल्लहिमवदादि विदेहान्तानां वर्षधराणां वर्षाणाञ्च बाहल्यप्रमाणं प्ररूपयितुमाह-"भरहदुगुणद्गुणा विक्खभा चुल्लहेमवंताइ विदेहंता वासहरवासा-" इति । भरतद्विगुणद्विगुणविष्कम्भाः--भरतक्षेत्रापेक्षया--उत्तरोत्तरं द्विगुणद्विगुणाः विष्कम्भाः विस्ताराः बाहल्यानि येषां ते-भरतद्विगुणद्विगुणविष्कम्भाः, क्षुल्लहिमवदादिमहाविदेहान्ताः-क्षुल्लहिमवद्-१ हैमवत-२ महाहिमवद्-३ हरिवर्ष-४ निपध-५ महाविदेहा:-क्रमशो वर्पधराः वर्षाश्च सन्ति । तत्र-भरतवर्षस्य द्विगुणविस्तारः क्षुल्लहिमवान् वर्षधरपर्वतोऽस्ति । क्षुल्लहिमवतो द्विगुणविस्तारो हैमवतो वर्षो वर्तते । हैमवतस्य-वर्षस्य द्विगुणविस्तारो महाहिमवान् वर्षघरपर्वतोऽस्ति । आगे क्षुद्रहिमवान् पर्वत, फिर हैमवत क्षेत्र, फिर महाहिमवान् पर्वत फिर हरिवर्ष, फिर निषध पर्वत, और फिर महाविदेह क्षेत्र है , इसमें पहले तीसरे और पाँचवें स्थान पर वर्षधर पर्वत हैं और दूसरे, चौथे तथा छठे स्थान पर क्षेत्र हैं ये वर्षधर पर्वत और वर्ष भरतवर्ष की अपेक्षा दुगुने दुगुने विस्तार वाले हैं । जैसे- भरतक्षेत्र का ऊपर जो विस्तार कहा है उससे दुगुना विस्तार क्षुद्रहिमवान् पर्वत का समझना चाहिए, क्षुद्रहिमवान् पर्वत की अपेक्षा दुगुना विस्तार हैमवत क्षेत्र का है, हैमवत क्षेत्र की अपेक्षा दुगुना विस्तार महाहिमवान् पर्वत का है, महाहिमवान् पर्वत की अपेक्षा दुगुना विस्तार हरिवर्ष का है, हरिवर्ष से दुगुना विस्तार निषध पर्वत का है और निषध पर्वत की अपेक्षा दुगुना विस्तार महाविदेह क्षेत्र का है ॥२७॥ तत्त्वार्थनियुक्ति-इससे पूर्व जम्बूद्वीपके अन्दर स्थित भरत क्षेत्रके विस्तार का प्ररूपण किया गया है, अब चुल्ल हिमवन्त से लेकर विदेह पर्यन्त तक के वर्पधर पर्वतों और वर्षों के विस्तार का परिमाण बतलाने के लिए कहते हैं क्षुद्रहिमवात् पर्वतसे लेकर विदेहक्षेत्र पर्यन्त जो वर्षधर और वर्ष हैं, उनका विस्तार उत्तरोत्तर दुगुना-दुगुना है । वे वर्षधर पर्वत और वर्ष इस प्रकार हैं-(१) चुल्लहिमवन्त (२) हैमवत वर्ष (३) महाहिमबन्त पर्वत (४) हरिवर्ष (५) निषध पर्वत और (६) महाविदेह क्षेत्र । इनमें से भरत क्षेत्र के पूर्व लिखित परिमाण की अपेक्षा चुल्लहिमवन्त पर्वत का परिमाण दुगुना है, चुल्लहिमवन्त पर्वत की अपेक्षा हैमवत क्षेत्र का परिमाण दुगुना है । हैमवत क्षेत्र के परिमाण से दुगुना महाहिमवान् पर्वत का परिमाण है। શ્રી તત્વાર્થ સૂત્રઃ ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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