________________
दीपिकानियुक्तिश्च अ. ५ सू. २२ जम्बूद्वीपगतसप्तक्षेत्रस्वरूपनिरूपणम् ६३१
अनन्तप्रदेशाश्चतस्र एव सन्ति, ऊर्व पुनस्तानेव चतुरः प्रदेशान् मर्यादीकृत्यो-परिस्थितचतुः प्रदेशादिकाऽनुत्तरा विमलानाम दिक् व्यपदिव्यते, एवमधस्तात् खलु तमोऽभिधाना-ऽधस्तना-ऽऽकाशप्रदेशचतुष्टयप्रवहो भवति, एताश्च-- दशदिशोऽनादिकालसन्निवेशिन्यो निश्चयनयाऽनुसारेणाऽनादिकालप्रसिद्धनामानश्चावगन्तव्याः ।
उक्तञ्च स्थानाङ्गसूत्रे ७-स्थाने-"जम्बूद्दीवे सत्तवासा पण्णत्ता, तंजहा भरहे, एरवते हेमवते हेरण्णवते, हरिवासे, रम्मगवासे, महाविदेहे" इति । जंबूद्वीपे सप्त वर्षा प्रज्ञप्ताःतद्यथा-भरतम्-ऐरवतम्-हैमवतम्-हैरण्यवतम् हरिवर्षः रम्यकवर्षः-महाविदेहः, इति ।
___ तत्र-भरतवर्षस्तावद हिमाचलस्य दक्षिणदिग्भागावस्थितस्त्रयाणां समुद्राणाञ्च मध्येआरोपितचापाकृतिरस्ति वैताढयेन-गङ्गासिन्धुभ्याञ्च विभक्तः षट् खण्डः ।१ हैमवतवर्षस्तु-क्षुद्रहिमवत उत्तरतो महाहिमवतश्च दक्षिणतः पूर्वाऽपरसमुद्रयोर्मध्ये वर्तते ।२ हरिवर्षश्च-निषधस्य दक्षिणतो : महाहिमवत उत्तरतः पूर्वापर समुद्रयो रन्तराले वर्तते ।३
महाविदेहवर्षश्च-निषधस्योत्तरतो नीलस्य दक्षिणतः पूर्वापरसमुद्रयोरन्तरालवर्ती विद्यते ।४ स्वरूप निष्पन्न होता है; उनकी आदि तो है पर अन्त नहीं है । विदिशाएँ चार हैं और वे अनन्त प्रदेशों से निर्मित है।
ऊर्ध्वदिशा भी उन्हीं चार प्रदेशों से उत्पन्न होती है । उसकी आदि ऊपर स्थित चार प्रदेशों से होती है। उसे अनुत्तरा-विमला दिशा भी कहते हैं ।
अधोदिशा का नाम तमस् है, वह नीचे के चार आकाश प्रदेशों से उत्पन्न हुई है। ये दशों दिशाएँ अनादिकालीन हैं और इनके नाम भी अनादिकाल से प्रसिद्ध हैं । यह निश्चयनय के अभिप्राय से समझना चाहिए ।
__स्थानांगसूत्र के सातवें स्थान में कहा है-'जम्बूद्वीप में सात वर्ष-क्षेत्र कहे गए हैं । वे इस प्रकार हैं-भरत, ऐरवत, हैमवत, हैरण्यवत, हरिवर्ष, रम्यकवर्ष महाविदेह ।'
(१) भरतवर्ष हिमवान् पर्वत के दक्षिण में अवस्थित है । उसके दक्षिण, पश्चिम और पूर्व में तीनों ओर लवणसमुद्र है । वह धनुष के आकार का है। वैताढ्य नामक पर्वत और गंगासिन्धु नामक दो महानदियों से विभाजित होने के कारण उसके छह खण्ड हो गए हैं।
(२) हैमवतवर्ष-चुल्लहिमवान् पर्वत से उत्तर में और महाहिमवान् पर्वत से दक्षिण में हैमवतवर्ष है । उसके पूर्व और पश्चिम में लवणसमुद्र है।
(३) हरिवर्ष-निषध पर्वत से दक्षिण में और महाहिमवान् पर्वत से उत्तर में स्थित है । इसके पूर्व और पश्चिम में लवणसमुद्र है।
(४) महाविदेहवर्ष-निषध पर्वत से उत्तर में और नीलपर्वत से दक्षिण में महाविदेह क्षेत्र है। इसके पूर्व और पश्चिम में भी लवणसमुद्र है ।
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧