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________________ दीपिकानियुक्तिश्च अ ५ सू. २२ जम्बूद्वीपगतसप्त क्षेत्रनिरूपणम् ६२७ छाया- तत्र-भरतै-१ रवत-२ हैमवत-३ हेरण्णयवत-४ हरि-५रम्यक-६महावि देहाः-७सप्तवर्षाः-, ॥२२॥ तत्त्वार्थदीपिका-पूर्वसूत्रे जम्बूद्वीपस्य विष्कम्भायामस्वरूपादिकं प्ररूपितम्, सम्प्रति हि तस्मिन्नेव जम्बूदीपे षड्भिः कुलपर्वतैर्विभक्तानि सतक्षेत्राणि सन्तीति प्ररूपयितुमाह "तत्थ भरहे" इत्यादि । तत्र खलु जम्बूद्वीपे द्वीपे भरतै-१ रवत-२ हैमवत-३ हैरण्यवत-४ हरि -५ रम्यक-६ महाविदेहा:-७सप्तवर्षाः क्षेत्राणि सन्ति । तथाच-भरतवर्षैरवतवर्ष हैमवतवर्ष-हैरण्यवतवर्ष-हरिवर्ष रम्यकवर्ष महाविदेहवर्षाः सप्तक्षेत्राणि तावद्जम्बूद्वीपे सन्तीति भावः ।। ___ तत्र-भरतबर्षस्तावद् हिमवतो दक्षिणदिग्भागे वैताढूयेन, गङ्गा सिन्धुभ्याञ्च विभक्तः षट् खण्डोऽस्ति, यस्य त्रिदिक्षु समुद्रोऽधिज्यचापाकारो वर्तते ॥१॥ शिखरिण उत्तरतस्त्रयाणाञ्च समुद्राणां मध्ये ऐवतवर्षो रक्ता-रक्तोदाभ्याञ्च विभक्तः षट्खण्डविस्तारः । २ उत्तरेण-क्षुद्र हिमवतो दक्षिणेन च महाहिमवतः पूर्वापरसमुद्रयोर्मध्ये हैमवतवर्षो विद्यते ।३ 'तत्थ-भरह एरवत' इत्यादि सूत्रार्थ ।।सू० २२॥ जम्बूद्वीप में सात वर्ष (क्षेत्र) हैं-(१) भरत (२) ऐरवत (३) हैमवत (४) हैरण्यवत (५) हरि (६) रम्यक और (७) महाविदेह ॥२२॥ तत्त्वार्थदीपिका-इससे पहले के सूत्र में जम्बूद्वीप की लम्बाई-चौड़ाई आदि की प्ररूपणा की गई है। अब उसी जम्बूद्वीप में छह कुलपर्वतों के कारण विभक्त हुए सात क्षेत्रों की प्ररूपणा की जाती है जम्बूद्वीप नामक द्वीप में (१) भरत (२) ऐरवत (३) हैमवत (४) हैरण्यवत (५) हरि वास (६) रम्यकवास और (७) महाविदेह नामक सात क्षेत्र हैं जो 'वर्ष' कहलाते हैं। जैसेभरतवर्ष, ऐरवतवर्ष, हैमवतवर्ष, हैरण्यवतवर्ष हरिवर्ष, रम्यकवर्ष, महाविदेहवर्ष; तात्पर्य यह है कि जम्बूद्वीप में ये सात क्षेत्र हैं। ___ (१) इन सात क्षेत्रों में से प्रथम भरतवर्ष हिमवान् पर्वत के दक्षिण में है। वैताढ्य नामक पर्वत और गंगा-सिन्धु नामक दो महानदियों के कारण विभक्त हो जाने से उसके छह विभाग हो गए हैं । भरतवर्ष के तीनों ओर लवण समुद्र है । वह ज्या (डोरी) सहित धनुष के आकार का है। (२) उपर उत्तर दिशा में शिखरि नामक पर्वत से उत्तर में और तीन समुद्रों के मध्य में ऐरवतवर्ष है । उसके भो वैताढ्यपर्वत और रक्ता तथा रक्तोदा नामक नदियों से विभक्त हो जाने के कारण छह खंड हो गए हैं। (३) क्षुद्रहिमवान् पर्वत से उत्तर में और महा हिमवान् पर्वत से दक्षिण में हैमवत नामक वर्ष अवस्थित है । उससे पूर्व और पश्चिम में लवण समुद्र है। શ્રી તત્વાર્થ સૂત્રઃ ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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