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________________ दीपिकानियुक्तिश्च अ० ५ सू. २१ जम्बूद्वीपस्यायामापेक्षया वैशिष्टयप्रदर्शनम् ६२३ वैशिष्टयेन स्वरूपं प्ररूपयितुमाह- “सव्वन्भंतरे वट्टे-" इत्यादि । सर्वाभ्यन्तरः-सर्वेषां द्वोपसमुद्राणां जम्बूद्वीपप्रभृति स्वयम्भूरमणसमुद्रपर्यन्तानां मध्ये जम्बूद्वीपः सर्वाभ्यन्तरवर्तीत्यर्थः, एवं वृत्तः कुलालचक्रवत् प्रतरवृत्तः, पूर्णिमचन्द्रवत् गोलाकारः न तु-वलयाकारः । लवणसमुद्रादयस्तु-वलयाकृतयः सन्ति, एवं-मेरुनाभिक -मेरुः मन्दरपर्वतो नाभौ-मध्ये यस्य स मेरुनाभिः खलु जम्बूदीप वर्तते । जम्बूद्वीपमध्ये मेरुरस्ति । मेरुस्तावत्--मन्दराचलनामा सकलतिर्यग्लोकमध्यभागस्य मयादाकारित्वान्मेरुः कनकपर्वतः एकसहस्रयोजनानि भूमिमध्ये प्रविष्टो वर्तते, नव-नवतियोजनानि चोर्ध्वन्नतोऽस्ति, श्रीभद्रशालवन नन्दनवनसौमनसबनपाण्डुकवननामानि तत्रो-पर्युपरि क्रमशश्चत्वारि वनानि सन्ति, उपरि चूलिका वर्तते । तत्र---श्रीभद्शावलनादुपरि पञ्चशतयोजनलभ्यं नन्दनवनं वर्तते नन्द नवनादुपरि सार्धद्विषाष्टयो जनसहस्रप्राप्यं सौमनसवनं वर्तते, सौमनसवनादुपरि षट्त्रिंशत्सहस्रयोजनगम्यं पाण्डुकवनं विलसति चत्वारिंशत्सहस्र योजनोन्नता चूलिका वर्तते, सा खलु-चूलिका सार्धपञ्चत्रिंशत्सहस्रयोजनमध्यान्तर्गतैर्वा-ऽवसेया, एवंभूतमेरुनाभिकः खलु जम्बूद्वीपोऽवसेयः । स च जम्बूद्वीपो विस्तारेण कियत्परिमाणः इत्याकाङ्क्षायामाह---लक्षयोजनविष्कम्भः-योजनशतसहस्रविस्तारः, लक्षयोजनानि विष्कम्भो विस्तारो-बाहल्यं यस्याऽसौ लक्षयोजनविष्कम्भः लक्षयोजविशेष रूप से जम्बूद्वीप के स्वरूप का प्ररूपण करते हैं इस रत्नप्रभा पृथ्वी पर पहले जो असंख्यात द्वीप समुद्र कहे गए हैं, उन सब के भीतर जम्बूद्वीप है। यह जम्बूद्वीप कुंभार के चाक के समान प्रतरवृत्त अर्थात् सपाट गोलाकार है या पूर्णिमा के चन्द्र की तरह गोल है; वलय के आकार का नहीं है । जम्बूद्वीप के अतिरिक्त शेष लवणसमुद्र आदि समुद्र और समस्त द्वीप वलय अर्थात् चूड़ी के समान गोलाकार हैं । जम्बूद्वीप के बिलकुल मध्य में सुमेरु पर्वत है । मेरुपर्वत का दूसरा नाम मन्दराचल भी है । वह संपूर्ण तिर्छ लोक की मर्यादा अर्थात् सीमा बनाने वाला है, इस कारण मेरु कहलाता है । वह स्वर्णमय है। सुमेरु पर्वत एक हजार योजन भूमि में फंसा हुआ है और निन्यानवे हजार योजन ऊपर है । उस पर एक-दूसरे के ऊपर चार वन हैं और ऊपर चोढी-शिखर है । चारों वनों के नाम इस प्रकार हैं-भद्रशाल वन, नन्दन वन, सौमनस वन और पाण्डुक वन । भद्रशाल वन से पाँच सौ योजन की ऊँचाई पर नंदनवन है। नन्दनवन से साढ़े बासठ हजार योजन की ऊँचाई पर सौमनस वन है और सौमनस वन से छत्तीस हजार योजन ऊपर पाण्डुक वन है । सुमेरु की चूलिका चालीस योजन ऊँची है। वह चूलिका चारसौ चौराणवे योजन मध्यान्तर्गत है । इस प्रकार मध्य में सुमेरु पर्वत से युक्त जम्बूद्वीप है जम्बूद्वीप का विस्तार कितना है, यह आशंका होने पर उत्तर दिया गया है-उसका विस्तार एक लाख योजन का है । जम्बू नामक वृक्ष से युक्त होने के कारण यह द्वीप जम्बूद्वीप શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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