SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 618
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५९६ तत्वार्यसूत्रे वासाः-तिर्यगूर्ध्वमधश्च सर्वतः-समन्तात् खलु अनन्तघोरभयङ्करतमसा सततव्याप्तान्धकाराः श्लेष्ममूत्रपुरीषस्रोतो मलशोणितवसा-मजा-मेदः-पूयलिप्ततलभागा भवन्ति । श्मशानभूमिरित्र पूतिमांसकचा-ऽस्थिचर्मदन्तनखाच्छन्नभूमयः श्वान-शृगाल-मार्जार-नकुल-वृश्चिक सर्पमूषिकहस्त्यश्व गो महिषमानुषशवकोष्ठा-ऽशुभतरदुर्गन्धाश्च भवन्ति, अत्यन्त हृदय द्रावकतीव्रकरुणरुदितैर्दीनविक्लवैरातध्वनिभिविलापैर्याचितैर्वाष्पसन्निरुद्धैर्गाढवेदनैः सन्तप्तोच्छ्वास निश्वासैरशान्तमुखरितकोलाहलभयत्रासजनकस्वनाश्च भवन्ति । ___ नारकीयशरीराणि चा-ऽशुभनामकर्मोदयादशुभतराणि अङ्गोपाङ्गनिर्माणसंस्थानस्पशे-रसगन्धवर्णस्वराणि हुण्डानि नि नाण्डजशरीराकृतीनि वर्तक (वटर) पक्षि शरीराकाराणि-अत्यन्तबीमत्सानि जुगुप्सा-जनकानि भवन्ति, यदवलोकनेन घृणा-भयञ्चोत्पद्यते परेषां जीवानाम् । अतएव तानि शरीराणि क्रूरकरुणबीभत्सा-ऽत्यन्तभयदर्शनानि तोबदुःखयातनापूर्णानि नित्याशुचीनि च भवन्ति । तानि च शरीराणि रत्नप्रभादि सप्तपृथिवीषु क्रमशोऽधोऽधोऽशुभतराणि सन्ति । तेषाञ्च नारकाणां तानि शरीराणि द्विविधानि भवन्ति, भवधारणीयानि-उत्तरवैक्रियाणि च । तत्र च सप्तस्वपि पृथिवीपु भवधारणीय शरीरावगाहना जघन्येनाऽगुलासंख्येयभागप्रमाणाः, तेषां नारकाणां भवति । वहाँ जो नरकावास हैं वे तिर्छ, ऊपर और नीचे सब ओर से अत्यन्त घोर और भयंकर अन्धकार से सदैव परिपूर्ण होते हैं। उनको लगभग श्लेष्म (कफ), मूत्र, विष्ठा, मल, रुधिर, चर्वी, मज्जा, मेद, एवं मवाद से लिप्त होते हैं । श्मशान भूमि के समान बदबूदार मांस, बाल, अस्थि, चर्म, दाँत नाखून आदि से वहाँ की भूमि व्याप्त रहती है। वहाँ ऐसी दुर्गन्ध आती रहती है जैसे मृतक कुत्ता, सियार, मार्जार, नकुल (न्यौला), बिच्छू, सर्प मूषिका हस्तो अश्व, गौ, भैस या मनुष्य का सड़ा शव हो । वहाँ अत्यन्त ही हृदयद्रावक, करुणाजनक रुदन की ध्वनि सुनाई देती है। नारक जीवों की आतध्वनि, विलाप, याचित शब्द सुनाई पड़ते है ! अश्रुओं से परिपूर्ण, गाढी वेदना से युक्त, संतापपूर्ण उच्छ्वास-निःश्वास का अशान्त एवं मुखरित कोलाहल मय, एवं त्रास जनक होता है। ___नारकीय जीवों के शरीर अशुभ नामकर्म के उदय से अन्यन्त अशुभ होते हैं । उनके अंग उपांगों का निर्माण संस्थान, स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण और स्वर हुण्ड होता है, ठेदे-भेदे पक्षो के शरीर के आकार के, बतक पक्षी के आकार के, अत्यन्त बीभत्स एवं घृणाजनक होते हैं। उन्हें देख कर दूसरे जीवो को घृणा और भय होता है। इस कारण वे शरीर क्रूर, करुणा, बीभत्स और अत्यन्त भयोत्पादक दिखाई देते हैं। तीन दुःखों और यातनाओं से परिपूर्ण एवं नित्य अशुचि होते हैं। नारकों के शरीर रत्नप्रभा आदि सातों पृथ्विों में क्रम से नीचे-नीचे अधिकाधिक अशुभ होते हैं । उनके शरीर दो प्रकार के होते हैं ।-भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय । इनमें से શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy