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________________ दीपिकानिर्युक्तिश्च अ० ४ सू. २८ भवनपत्यादिदेवानामायुःप्रभावादेर्न्य नाधकत्वम् ५४९ जानन्ति पश्यन्ति ? गौतम ! जघन्येनां गुलस्या - संख्येयभागम्, उत्कृष्टेना -ऽधो यावत्अस्या रत्नप्रभायाः आदिमं चरमान्तं तिर्यभ यावदसंख्येयान् द्वीपसमुद्रान् ऊर्ध्वं यावत्-स्वकानि विमानानि अवधिना जानन्ति पश्यन्ति । एवम् - ईशानदेवा अपि, सनत्कुमारदेवाऽपि एवञ्चैव । नवरं यावद् अधो द्वितीयस्याः शर्कराप्रभायाः आदिमं चरमान्तम् । एवम् - माहेन्द्रदेवा अपि ब्रह्मलोक - लान्तकदेवा स्तृतीयाः पृथिव्या आदिमं चरमान्तम् । आनत - प्राणता - ssरणा - ऽच्युतदेवाः अधो यावत् पञ्चम्या धूमप्रभाया अधस्तनं-चरमान्तम् । अधस्तनमध्यमग्रैवेयकदेवाः अधो यावत् षष्ठ्या स्तमः प्रभायाः पृथिव्याः अधस्तनं यावत्-चरमान्तम् । उपरितनग्रैवेयकदेवाः खलु भदन्त ! कियत् क्षेत्रम् अवधिना जानन्ति पश्यन्ति-: गौतम ! जघन्येनाङ्गुलस्या--ऽसंख्येयभागम्, उत्कृष्टेना -ऽधः सप्तम्याः पृथिव्याः अधस्तनं - चरमान्तम् तिर्यग् यावदसंख्येयान् द्वीपसमुद्रान् ऊर्ध्वं यावत् स्वकानि विमानानि - अवधिना जानन्ति पश्यन्ति । - सौधर्मकल्प के देव अवधि ज्ञानसे कितने क्षेत्र को जानते देखते है ? प्रश्न- उत्तर —– गौतम' जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग को, उत्कृष्ट नीचे इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचले चरमान्त तक, तिरछे असंख्यात द्वीप - समुद्रों तक, ऊपर अपने-अपने विमानों तक अवधिज्ञान से जानते-देखते हैं' ईशान कल्प के देव भी इतना ही जानते देखते हैं । सनत्कुमार नीचे दूसरी शर्करा - प्रभा पृथ्वी के नीचले चरमान्त तक जानते-देखते हैं । माहेन्द्र देव भी इतना ही जानते देखते हैं । ब्रह्मलोक और लान्तक कल्प के देव तीसरी पृथ्वी के चरमान्त तक जानते-देखते हैं, महाशुक्र और सहस्रारकल्प के देव चौथी पंकप्रभा पृथ्वी के नीचले चरमान्त तक जानतेदेखते हैं । आनत, प्राणत, आरण और अच्युत देव नीचे पाँचवीं धूमप्रभा के नीचले चरमान्त तक, अधस्तन और मध्यम ग्रैवेयकों के देव नीचे छठी तमा नामक पृथ्वी के नीचले चरमान्त तक जानते देखते हैं । प्रश्न - उपरितन ग्रैवेयकों के देव अवधिज्ञान से कितने क्षेत्र को जानते देखते हैं । उत्तर - गौतम' जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग को, उत्कृष्ट नीचे सातवीं पृथ्वी के नीचले चरमान्त तक, तिर्छे असंख्यात द्वीप - समुद्रों तक, ऊपर अपने-अपने विमानों के ध्वजा पताका तक अवधिज्ञान से जानते-देखते हैं ? શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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