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तत्त्वार्थ सूत्रे
तदग्रे त्रित्रिरूपेण त्रीणि त्रिकाणि कल्पातीतानां नवग्रैवेयक देवानां सन्ति, तेषु प्रथमं त्रिकं समतल भूमितः पञ्चरज्जुकम् एकरज्जुकस्य त्रयो भागाः क्रियन्ते तेभ्य एको भागचेतावत्कमुपरि वर्तते ३ द्वितीयं त्रिकं पञ्चरज्जुकम् एकस्य रज्जुकस्य भागत्रयमध्याद् द्वौ भागौ चेतावत्कं समभूमित उपरि वर्त्तते ६ तृतीयं त्रिकं परिपूर्ण षड्ज्जुक समतल भूमित उपरि वर्त्तते ९ एते नव पुरुषाकारलोकस्य ग्रीवा - स्थाने वर्त्तमानत्वाद् ग्रैवेयका उच्यन्ते । तदग्रे पञ्चानुत्तरविमानानि येषामुत्तरेऽग्रे न केsपि विमानविशेषा विद्यन्ते इति तान्यनुत्तरविमानानि प्रोच्यन्ते ते पञ्च प्रत्येकं चतुर्दिक्षु समश्रेण्या स्थिताः किञ्चिदूनसप्तरज्जुकं समतलभूमित उपरि वर्त्तते । तेषां पञ्चानां परस्परमन्तरम् एकरज्जुकस्य किञ्चिदूनाः पञ्चभागा क्रियन्ते, तन्मध्यादेकेक भागपरिमितमन्तरमेकैकस्य बर्तते । इति पञ्चानुत्तर विमानवर्णनम् । नवग्रैवेयकाः, पञ्चानुत्तर देवाश्चेति चतुर्दशानां कल्पातीतदेवानां वर्णनमग्रिमसूत्रे करिष्यते इति ।
जम्बूद्वीपे महामन्दरः सहस्रयोजनावगाहो नवनवतिसहस्रयोजनोच्छ्रायः । तस्याधस्तदधोलोको वर्त्तते । तिर्यक्प्रसृतश्च तिर्यग्लोको वर्त्तते तस्योपरिष्टात् उर्ध्वलोको वर्त्तते । मेरूचूलिका चचत्वारिंशद् योजनोच्छ्राया बोध्या । उक्तश्व - प्रज्ञापनायां प्रथमपदे देवाधिकारे - "वेमाणिया“दुविहा पण्णत्ता, तंजहा कप्पोववण्णगा य कप्पाईया य, से किं तं कप्पोववण्णगा - ? कप्पोव
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इनके आगे तीन तीन करके तीन त्रिक में कल्पातीत नव ग्रैवेयक देव हैं । उन तीन त्रिकों में से पहला त्रिक समतल भूमि से पाँच राजू और एक राजू के तीन भागों में का एक भाग जीतना ऊँचा है ३ । दूसरा त्रिक पाँच राजू और एक राजू के तीन भागो में का दो भाग जितना ऊँ । है ६ । और तीसरा त्रिक पूरा छह राजू समतल भूमि से ऊँचा है । ये नव पुरुषाकार लोक ग्रीवा (गला) स्थल पर होने से ग्रैवेयक कहलाते हैं ९ ।
इन के आगे पाँच अनुत्तर विमान हैं, जिनके उत्तर अर्थात् आगे कोई विमान न होने से ये अनुत्तर विमान कहलाते हैं ये पाँच प्रत्येक चारों दिशाओं में समश्रेणि से स्थित है ये समतल भूमि से कुछ कम सात राजू ऊँचे हैं। ये पांचों अनुत्तर विमान एक राजू के कुछ कम पाँच भाग किये जायँ, उन में से एक-एक भाग के अन्तर से स्थित हैं । यह पाँच अनुत्तर विमानों का वर्णन हुआ। ऐसे ये नौ ग्रैवेयक और पाँच अनुत्तर विमान वासी इस प्रकार चौदह कल्पातीत देव कहलाते हैं, इन चौदह प्रकार के कल्पातीत देवों का वर्णन अगले सूत्र में किया जायगा ।
जम्बूद्वीप का महामन्दर पर्वत एक हजार योजन पृथिवी के अन्दर है, निन्यानबे (९९) हजार योजन की इसकी ऊँचाई है, इसके नीचे के भाग में अधोलोक है । तिर्यक् अर्थात् टेढ़ा फैला हुआ तिर्यगलोक है । इसके ऊपर ऊर्ध्वलोक है । इस मेरुकी चूलिका चालीस योजन की ऊँचाई वाली है ।
प्रज्ञापना सूत्र के प्रथम पद में देवाधिकार में कहा है वैमानिक देव दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा - कल्पोपपन्नक और कल्पातीत कल्पोपपन्नक कितने प्रकार के हैं ? वे
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧