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दीपिकानियुक्तिश्च अ० ४ सू० १९ कल्पोपपन्नकवैमानिकदेवनिरूपणम् ५०७
बिमानगतज्योतिषः सम्बन्धिनो वा देवाः तेन दीव्यन्ति-द्योतन्ते, वपुःसम्बन्धिना वा ज्यो तिषा दीव्यन्ते इति ज्तोतिष्का उच्यन्ते । ज्योतिरेव भास्वरदेदीप्यमानशरीरत्वात् समस्तदिङ्मण्डलद्योतकत्वाद्वा ज्योतिष्काः उच्यन्ते, स्वार्थे कन् प्रत्ययः, । मुकुटेषु तावत्-प्रभामण्डलस्थानीयानि-उज्ज्वलानि चन्द्रसूर्यादीनि भवन्ति । चन्द्रस्य -चन्द्राकार चिह्नम्, सूर्यस्य-सूर्याकारं चिह्नम् एवम् ग्रहनक्षत्राणामप्यवगन्तव्यम्. !
उक्तञ्च प्रज्ञापनायां प्रथमपदे १ देवाधिकारे--- 'जोइसिया पंचविहा पण्णत्ता, तंजहा चंदा -सूरा-गहा-णक्खत्ता-तारा-,,इति. । ज्योतिष्काः पञ्चविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-चन्द्रा:-सूर्या:ग्रहाः- नक्षत्राणि-ताराः इति ॥१९॥
मूलसूत्रम् - 'कप्पोववण्णगा वेमाणिया बारसविहा,सोहम्म-ईसाणसणंकुमार-माहिंद -बंभलोय-लंतय-महामुक्क-सहस्सार-आणय-पाणयारणाच्चुयभेदा-॥२०॥
छाया-कल्पोपपन्नका वैमानिकाः द्वादशविधाः सौधर्मे-शान-सनत्कुमार-माहेन्द्रब्रह्मलोकलान्तक-महाशुक्र सहस्रारा-ऽऽनत-प्राणताऽऽरणा-च्युतमेदात्-॥२०॥
तत्त्वार्थदीपिका-वैमानिकस्वरूपं निरूपयितुं पूर्व चतुर्विधदेवेषु भवनपति-वानव्यन्तर-ज्यो तिष्क-वैमानिकेषु विशेषतो भवनपतयो वानव्यन्तरा ज्योतिप्काश्च देवाः प्ररूपिताः सम्प्रति-कल्पोपपन्नकवैमानिकदेवान्द्वादशविधान् प्रतिपादयितुमाहअथवा उन देवों को समस्त दिशामंडल प्रकाशित करने के कारण ज्योतिष्क कहते हैं । 'ज्योतिष्क' शब्द में स्वार्थ में 'कन्' प्रत्यय हुआ है, अर्थात् 'ज्योतिष्' शब्द में 'कन्' प्रत्यय करने पर भी उसके अर्थ में कोई परिवर्तन नहीं होता-जो अर्थ 'ज्योतिष' शब्द का है वही 'ज्योतिष्क' शब्द का भी है।
उन देवों के मुकुटों में प्रभामण्डल स्थानीय चन्द्र-सूर्य आदि के चिह्न हो होते हैं । चन्द्रदेव के मुकुट में चन्द्र के आकार का और सूर्य देव के मुकुट में सूर्य के आकार का चिह्न है । यही बात ग्रहों और नक्षत्रों के संबन्ध में भी समझना चाहिए । प्रज्ञापनासूत्र के प्रथम पद में देवों के प्रकरण में कहा है-ज्योतिष्क देव पाँच प्रकार के हैं -चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, और तारा ॥१९॥
सूत्रार्थ- 'कप्पोववण्णगा वेमाणिया' इत्यादि सूत्र----॥२०॥ कल्पोपपन्नवैमानिक देव बारह प्रकार के हैं । -(१) सौधर्म (२) ईशान (३) सनत्कुमार (४) माहेन्द्र (५) ब्रह्मलोक '६) लान्तक (७) महाशुक्र (८) सहस्रार (९) आनत (१०) प्राणत (११)आरण और (१२) अच्युत । सूत्र २०॥
तत्त्वार्थदीपिका-भवनपति, वानव्यन्तर ज्योतिष्क और वैमानिक, इन चार प्रकार के देवो में से पहले भबनपति, बानव्यन्तर और ज्योतिष्क देवों की प्ररूपणा की गई है । अब बारह प्रकार के कल्पोपपन्न देवों का कथन करने के लिए कहते हैं
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧