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________________ तत्वार्थ सूत्रे तत्वार्थदीपिका - पूर्वं तावत् सामान्यतो भवनपतिवा नव्यन्तरज्योतिष्कवैमानिकेषु चतुर्विधेषु देवेषु प्रतिपादितेषु विशेषतो भवनपति - वानव्यन्तराणां देवानां प्ररूपणं कृतम्, सम्प्रतिक्रमप्राप्तान् ज्योतिष्क देवान् विशेषतो निरूपयितुमाह " जोइसिया पंचविहा- " इत्यादि । ५०४ ज्योतिष्काः—ज्योतिःस्वभाववत्वात् तेजोमयाः ज्योतिष्कसंज्ञका देवाः पञ्चविधाः सन्ति, चन्द्र-सूर्य-ग्रहनक्षत्रताराभेदतः तथाच - चन्द्रसूर्यादिनामकर्मोदयात् तत्प्रत्ययाः खलु चन्द्रसूर्यग्रहनक्षत्रतारा संज्ञकास्ते ज्योतिष्कदेवा भवन्ति, एतेषां प्रत्येकं प्रभावश्च भिन्नभिन्नरूपाः सन्ति । अस्मात् खलु–समतलभूभागात ऊर्ध्वं नवत्यधिकसप्तशतयोजनानि उपरि, सर्वज्योतिषामधोभागे व्यवस्थितास्तारकाः सन्ति ततो दशयोजनानि ऊर्ध्वं सूर्याश्चरन्ति, ततोऽशीतियोंचन्द्रचरन्ति । ततश्चत्वारि योजनानि ऊर्ध्वं नक्षत्राणि चरन्ति ततश्चत्वारि योजनान्युत्पबुधाश्चरन्ति । ततस्त्रीणि योजनान्युत्पत्य शुक्राश्चरन्ति ततस्त्रीणि योजनान्यूर्ध्वं वृहस्पतयः सञ्चरन्ति, ततस्त्रीणि योजनान्यूर्ध्वमतिक्रम्य कुजाः सञ्चरन्ति । ततस्त्रीणि योजनान्यूर्ध्वमतिक्रम्य शनैश्वराश्वरन्ति, स एष ज्योतिर्गणसञ्चरणविषयो नभोऽवकाशो दशाधिकयोजनशतविस्तारस्तिर्यगसंख्येयद्वीपसमुद्रप्रमाणो घनोदधिपर्यन्तोऽवगन्तव्यः ॥ १९ ॥ तत्त्वार्थदीपिका- पहले सामान्य रूप से भवनपति, वानव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक के भेद से चार प्रकार के देवों की प्ररूपणा की गई थी, उनमें से भवनपति और वानव्यन्तर देवों की विशेष रूप से प्ररूपणा की गई । अब क्रम से प्राप्त ज्योतिष्क देवों की विशेष प्ररूपणा की जाती है तेजोमय ज्योतिष्क नामक देव पाँच प्रकार के कहे गये है - ( १ ) चन्द्र ( २ ) सूर्य (३) ग्रह (४) नक्षत्र और (५) तारा । चन्द्र - सूर्यादि नामकर्म के उदय से चन्द्र, सूर्य ग्रह, नक्षत्र और तारा नामक ज्योतिष्क देव होते हैं इन सब के प्रभाव भिन्न भिन्न प्रकार के होते हैं । इस भूमि के समतल भाग से सातसौ नब्बे योजन की उँचाई पर सभी ज्योतिष्क देवों के नीचे तारक देव विद्यमान हैं । इनसे दश योजन ऊपर अर्थात् आठसौ योजन की उँचाई पर सूर्य देव होते हैं सूर्य से अस्सी योजन ऊपर चन्द्र देव विचरण करते हैं। अर्थात् ८८० योजन ऊपर चन्द्र हैं । चन्द्र से चार योजन ऊपर नक्षत्रों का चार होता है । और उनसे भो चार योजन की उँचाई पर बुध का चार होता है । बुध से तीन योजन ऊपर शुक्र का विमान है, उससे तीन योजन ऊपर वृहस्पत्ति का विमान है और इससे भी तीन योजन ऊपर मंगल का चार होता है । इससे भी तीन योजन ऊपर शनैश्चर का विमान है । इस प्रकार समस्त ज्योतिष्क देवों का सम्पूर्ण चार क्षेत्र एक सौ दस योजन का है । तिर्छे में असंख्यात द्वीपसमुद्र प्रमाण घनोंदधि पर्यन्त समझना चाहिए ॥१९॥ શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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