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________________ तत्त्वार्थसूत्रे उक्तञ्च व्याख्याप्रज्ञप्तौ भगवती सूत्रे १ शतके ७ उद्देशके-"चउव्विहा देवा पण्णता, तंजहा भवणबइ-वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया-” । चतुर्विधा देवा प्रज्ञप्ताः, तद्यथा भवनपतिवानव्यन्तरज्योतिष्कवैमानिका इति ॥१६॥ मूलसूत्रम्-“तत्थ भवणवइ दसविहा,असुर-नाग सुवण्णविज्जू अग्गी दीव उदहिदिसा वाउ थणियकुमारभेदा ॥१७॥ छाया-"तत्र-भवनपतयो दशविधाः, असुर-नाग-सुपर्ण-विद्युदग्नि- द्वीपो- दधिदिशा-वायु-स्तनितकुमार-भेदात्-,, ॥ १७ ॥ तत्त्वार्थदीपिका- पूर्वसूत्रे भवनपति-वानव्यन्तर-ज्योतिष्क-वैमानिकभेदेन देवाश्चतुर्विधाः प्रतिपादिताः, सम्प्रति-तेषु प्रथमोपात्तानां भवनपतीनां विशेषतो दशभेदान् प्ररूपयितुमाह-"तत्थभवणवई दसविहा-" इत्यादि । तत्र-तेषु चतुर्विधेषु भवनपति-वानव्यन्तर-ज्योतिष्क-वैमानिकदेवेषु भवनपतयस्तावद् दशविधा भवन्ति, असुरकुमार-नागकुमार-सुपर्णकुमार-विद्युत्कुमाराऽग्निकुमार-द्वीपकुमारो-दधिकुमार-दिशाकुमार-वायुकुमारस्तनितकुमारभेदात्, द्वन्द्वान्ते श्रूयमाणस्य कुमारशब्दस्य प्रत्येकभभिसम्बन्ध. । एते च दशभवनवासिशब्देनाऽपि व्यपदिश्यते-- ॥१७॥ तत्त्वार्थनियुक्तिः-पूर्व तावत् सामान्यतो देवाश्चतुर्विधाः-भवनपति–वानव्यन्तरज्योतिष्क-वैमानिकरूपाः प्ररूपिताः , सम्प्रति-तेषु प्रथमोपात्तानां भवनवासिनां विशेषतो दश भगवतीसूत्र के प्रथम शतक के सातवें उद्देशक में कहा है-'देव चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा-भवनपति, वानव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक ॥१६॥ सूत्रार्थ--'तत्थ भवणवई दसविहा' इत्यादि सूत्र १७ भवनपतिदेव दस प्रकार के हैं-असुरकुमार, नागकुमार, सुपर्णकुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, द्वोपकुमार, उदधिकुमार, दिशाकुमार, वायु-पवन) कुमार और स्तनितकुमार ॥१७॥ तत्वार्थदीपिका-पूर्वसूत्र में भवनपति, वानव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक के भेद से चारप्रकार के देवों का प्रतिपादन किया गया है; अब उनमें सब से पहले गिने गये भवनपतियों के दस अवान्तर भेदों का प्रतिपादन करने के लिए कहते हैं उनमें से अर्थात् चार प्रकार के भवनपति, वानव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों में से भवनपति दस प्रकार के होते हैं-(१) असुरकुमार (२) नागकुमार (३) सुपर्णकुमार (४) विद्युत्कुमार (५) अग्निकुमार (६) द्वोपकुमार .७) उदधिकुमार (८) दिशाकुमार (९) पवनकुमार और (१०) स्तनितकुमार । द्वन्द्वसमास के अन्त में जुड़ा हुआ पद सभी के साथ लगाया जाता है, इस नियम के अनुसार 'कुमार' शब्द यहाँ सब के साथ लगाया जाता है । ये भवनपति देव 'भवनवासी' भी कहलाते हैं ॥१७॥ तत्वार्थनियुक्ति---इससे पूर्व भवनपति, वानव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक के भेद से શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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