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________________ ४८६ तस्वार्थसूत्रे प्रदेशत्व चेतनावत्त्वज्ञानवत्वादिः खलु परिणामोऽनादिर्भवति, कश्चित्पुनः परिणामस्तस्यैव जीवस्य देवत्व-मनुष्यत्वादिलक्षणः सादिर्भवति । पुद्गलद्रव्यस्यापि–मूर्तत्वरूप-रस-गन्ध-स्पर्शादिमत्त्वलक्षणः परिणामोऽनादिः किन्तु-घटपटादिपर्यायलक्षणः परिणामस्तु सादिर्भवति । एवम्-धर्माधर्मरूपद्रव्यद्वयस्य लोकाकाशव्यापकत्वादिस्तावत् परिणामोऽनादिः । जीवपुद्गलादिगतिास्थतिनियामकस्य तस्य तावद् धर्माधर्मद्रव्यद्वयस्य गतिस्थितिपरिणतिमज्जनितः परिणामः पुनः सादिर्भवति ।। एवं-लोकाकाशस्यापि-अमूर्तत्वासंख्येयप्रदेशवत्त्वादिर नादिः परिणामः । अवग्राहकद्रव्यजनितः परिणामः पुनरवगाहलक्षणः सादिर्भवति । इत्येवं रीत्याऽनादिसादिपरिणामविशिष्टः पर्यायान्तरोत्पादलक्षणः प्रादुर्भावो द्रव्याणां भवति । तिरोभावस्तु-सन्ततिरूपेणावस्थितौ वैस्रसिको विनाशइत्यादिरूपो भवति । स्थि िधौ व्यं तेषां द्रव्याणामनादिः परिणामः । एवम्-सर्वेषां द्रव्याणां परस्परं भेदलक्षणोऽन्यत्वरूपः परिणामोऽनादिः सम्भवति । जीवानाञ्च-परस्परोपकारादिलक्षणः परिणामोऽनादिः । विनाशस्तु-प्रायोगिकः परिणामः सादिवतते । असंख्यातप्रदेशवत्त्व, ज्ञानवत्त्व आदि जीव के अनादि परिणाम हैं । उसके कोई-कोई परिणाम, जैसे देवत्व, मनुष्यत्व आदि, सादि भी होते हैं। इसी प्रकार पुद्गल द्रव्य का मूर्त्तत्त्व रूप, रस, गंध, और स्पर्शवत्व परिणाम अनादि है, घट-पट आदि पर्याय रूप परिणाम सादि है। धर्म और अधर्म द्रव्य का लोकाकाशव्यापकत्व आदि परिणाम अनादि है । ये द्रव्य जीवों और पुद्गलों की गति और स्थिति के नियामक हैं, अतएव गतिशील और स्थितिशील जीव-पुद्गलों के परिणमन से उत्पन्न होने वाला धर्मद्रव्य और अधर्मद्रव्य का वह परिणाम सादि है । इसी प्रकार लोकाकाश का अमूर्त्तत्व एवं असंख्यातप्रदेशवत्वपरिणाम अनादि है। किन्तु अवगाहक द्रव्यों के निमित्त से उत्पन्न होने वाला अवगाह परिणाम सादि है। इस प्रकार द्रव्यों में पूर्वपर्याय का विनाश और उत्तर पर्याय का उत्पाद रूप सादि परिणाम होना ही प्रादुर्भाव और तिरोभाव है । अर्थात् नवीन पर्याय की उत्पत्ति को प्रादुर्भाव कहते हैं और पूर्वपर्याय के विनाश को तिरोभाव कहते हैं। यह सभी द्रव्यों में निरन्तर होते रहते हैं । वस्तु संतान (द्रव्य) रूप से अवस्थित रहती है, फिर भी उसमें स्वाभाविक और कारण जन्य विनाश होता ही रहता है। स्थिति या ध्रौव्य सभी द्रव्यों का अनादि परिणाम है । इसी प्रकार छहों द्रव्यों में परस्पर भिन्नता रूप जो परिणाम है, वह भी अनादि है, अर्थात् अनादि काल से प्रत्येक द्रव्य का ऐसा स्वरूप है कि वह किसी अन्य द्रव्य के रूप में परिणत नहीं होता। परस्पर में उपकार करना, यह जो जीव द्रव्य का परिणाम है, वह भी अनादि कालिन है । जीव का सादि परिणाम तो पर्यायों के रूप में स्पष्ट ही है । શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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