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तत्त्वार्थसूने त्रीन्द्रिया-पिपीलिका प्रभृतयः । चतुरिन्द्रिया-भ्रमरादयः । पञ्चेन्द्रियाः-मनुष्यादयोऽवसेयाः । तथाचोक्तम्-जीवाभिगमस्य-१-प्रतिपत्तौ २-सूत्रे “से किं तं ओराला तसा य पण्णत्तातं जहा बेइंदिया ते इंदिया चउरिदिया पंचिंदिया”—इति ।
अथ के ते ओरालास्त्रसाः प्राणिनः ३ चतुर्विधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-द्वीन्द्रियाः त्रीन्द्रियाः चतुरिन्द्रियाः पञ्चेन्द्रिया इति । तत्र-द्वे-इन्द्रिये स्पर्शन-रसन रूपे येषां ते द्वीन्द्रियाः । एवम्त्रीणि स्पर्शन-रसन-प्राणरूपाणि इन्द्रियाणि येषां ते त्रीन्द्रियाः चत्वारि-स्पर्शनरसनघ्राणचक्षूषि इन्द्रियाणि येषां ते चतुरिन्द्रियाः स्पर्शनादीनि (कर्णान्तानि) पञ्चेन्द्रियाणि येषां ते पञ्चेन्द्रियाः ।
तत्र-शंख-शुक्ति-वराटक-जलोकप्रभृतयो द्वीन्द्रियाः, कुन्थु-वृश्चिक--शतपदी-न्द्रगोपयूका-लिक्षा मत्कुण-पिपीलिकादयस्त्रीन्द्रियाः, दंस-मशक-पतङ्ग-भ्रमर-मक्षिकादयश्चतुरिन्द्रियाः, मनुष्य-गो-महिष-सर्प-गृहगोधिकादयः-पञ्चेन्द्रिया बोध्याः । सूत्र ॥८॥
मूलम्-"एगिदिया पुढवीकाइयाइया पंच थावरा"-॥९॥ छाया- “एकेन्द्रियाः-पृथिवीकायिकादयः पञ्चस्थावराः”–सू० ॥९॥
दीपिका-पूर्व स्थावराः संसारिणो जीवाः प्रतिपादिताः सम्प्रति-तेषां पञ्चभेदप्रतिपादनपूर्वकं स्वरूपाणि निरूपयितुमाह-“एगिदिया पुढविकाइया इया पंचथावरा"--इति । एकेन्द्रियाः-स्पर्शनात्मकमेकमिन्द्रियं येषां ते एकेन्द्रियाः पृथिवीकायिकादयः । त्रीन्द्रिय, भ्रमर आदि चतुरिन्द्रिय और मनुष्य आदि पंचेन्द्रिय जानने चाहिए। जीवाभिगम की प्रथम प्रतिपत्ति के २७ वें सूत्र में कहा है-उदार त्रस प्राणी कितने प्रकार के हैंद्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय । जिन जीवों में स्पर्शन और रसना ये दो इन्द्रियाँ होती हैं, वे द्वीन्द्रिय कहलाते हैं। इसी प्रकार जो स्पर्शन, रसना और घ्राण इन्द्रियों से युक्त हैं, वे त्रीन्द्रिय कहलाते हैं । जिनके इन तीन इन्द्रियों के साथ चक्षुरिन्द्रिय भी होती हैं, वे चतुरिन्द्रिय हैं। कान सहित पाँचों इन्द्रियों वाले जीव पंचेन्द्रिय कहलाते हैं।
शंख, सीप, कौड़ी आदि द्वीन्द्रिय जीव है; कुन्थु, वृश्चिक शतपदी, इन्द्रगोप, जू, लीख खटमल, कौड़ी आदि त्रीन्द्रिय हैं; डांस, मच्छर , पतंग, भ्रमर,मक्खी आदि चतुरिन्द्रिय हैं और मनुष्य, गाय, भैस सर्प छिपकली आदि पंचेन्द्रिय हैं ॥८॥
सूत्रार्थ-'एगिदिया पुढवीकाईए' इत्यादि । पृथिवीकायिक आदि पाँच स्थावर एकेन्द्रिय हैं ॥९॥
तत्त्वार्थ दीपिका-पहले संसारी जीवों का एक प्रकार स्थावर कहा गया था, अब उसके पाँच भेद बतलाकर स्वरूप का निरूपण करने के लिए कहते हैं---
जिन जीवोंमें सिर्फ एक स्पर्शन क्रिया पाई जाती है, वे पृथ्वीकायिक आदि स्थावर कहलाते हैं । आदि शब्द से अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक का ग्रहण होता
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧