________________
४७२
तत्त्वार्थसूत्रे
ग्भवति लोकेऽश्रद्धेयवचनश्च संजायते एवमैहिकं प्रत्यवायजन्यम् असत्यभाषणप्रयुक्तं जिह्वाच्छेदनश्रोत्र- नासिकाच्छेदनादिकं प्रतिगर्हितं फलं लभते, नारकादितीवयातनादुःखञ्चाssमुष्मिकं फलं लभते
एवमनृतभाषणजनितदुःखयुक्तेभ्यो बद्धवैरेभ्यो जिह्वाच्छेदनादि पूर्वोक्तदोषाऽपेक्षयाऽपि यातना विशेषानधिकान् वधबन्धादीन् दुःखहेतून् प्राप्नोति तीव्राशयो जन स्तीव्रस्थित्यनुभावमेव कर्मों-पादत्ते - प्रेत्यचा- शुभां तीव्रनारकादियातनामा सदयति, तस्मादनृतभाषणस्यैवंविधविषमफलविपाकमात्मन्यनुभावयन् “तद्व्युपरमः श्रेयान् " इतिरीत्या विचार्या नृतभाषणाद् व्युपरतो भवति,
यथाच प्राणातिपाता ऽसत्यभाषणाऽनुष्ठायिनः प्रत्यवाययुक्ता भवन्ति, एवं परद्रव्यहरणप्रसक्तमतिरपि स्तेनः सर्वस्योद्वेजको भवति अपह्रियमाणद्रव्यादिधनस्वामिन उद्वेगं समुत्पादयति, [तेन ] इहलोकेऽन्यद्रव्यापहरणजन्यताडनपीडनकशाद्यभिघातनिगडशृंखलादि बन्धनकर-चरण-श्रोत्र - नासिकौ ष्ठच्छेदन भेदन सर्वस्वहरणादिकं प्रतिलभते प्रेत्य च नारकादितीवयातनागतिं प्राप्नोति, तस्मात् - स्तेयादव्युपरमः श्रेयान् इति भावयम चौर्याद व्युपरतो भवति, यथा-खलु प्राणातिपाताऽसत्यभाषणस्तेयाऽनुष्ठायिनः प्रचुरान् प्रत्यवायान् पाप्नोति ।
असत्य भाषण करने वाले की जीभ काट ली जाती है, कान और नाक का छेदन किया जाता है । इस प्रकार असत्यवादी अत्यन्त निन्दनीय फल भोगता है । परलोक में उसे नरक आदि की तीव्र यातनाएँ एवं घोर दुःख सहन करने पड़ते हैं ।
1
इस प्रकार असत्य भाषण से जीव नाना प्रकार के दुःखों से युक्त होता है । दूसरों के साथ उसका वैर बंध जाता है । जिह्वा छेदन आदि के कष्ट उसे प्राप्त होते हैं । इन सब पूर्वोक्त दोषों की अपेक्षा भी उसे वध - बन्धन आदि दुःखों के विशेष कारण प्राप्त होते हैं । जिसका अध्यवसाय तीव्र होता है, वह दीर्घ स्थिति और तीव्र अनुभाव (रस) वाले कर्मों का बन्ध करता है फलस्वरूप परलोक में तीव्र अशुभ वेदना का वेदन करता है । असत्य भाषण के इस प्रकार के फल- विपाक की विचारणा करने वाले के चित्तमें उससे अरुचि उत्पन्न हो जाती है और वह सोचता है कि असत्य भाषण से विरत होना ही श्रेयस्कर है ! इस तरह के विचार के फलस्वरूप वह असत्य भाषण से विरत हो जाता है ।
जैसे प्राणातिपात और असत्य भाषण करने वालों को अनर्थों का सामना करना पड़ता है, उसी प्रकार परकीय द्रव्य के अपहरण में आसक्त चोर को भी अनर्थ भोगने पड़ते हैं । वह सबके लिए त्रासदायक होता है । वह जिसके धन को चुराता है, उसे बड़ा ही उद्वेग उत्पन्न होता है । इस पापकृत्य का सेवन करने से चोर को ताड़न, पीडन Farst की मार, हथकड़ियों - बेड़ियों का बन्धन, हाथों पैरों कान नाक होठ आदि अवयवों का छेदन-भेदन, सर्वस्वहरण आदि -आदि दुष्परिणाम भुगतने पड़ते हैं । परलोक में भी उसे नरक आदि की तीव्र यातनाएँ भोगनी पड़ती हैं। अतएव चोरी से विरत हो जाना ही कल्याणकर है । इस प्रकार की भावना करने वाला चोरी से निवृत हो जाता है !
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧