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________________ ४२८ तत्वार्थसूत्रे ____ अथ चतुर्थप्रश्नोत्तराशय उच्यते सूक्ष्मा एव पुद्गलाः सूक्ष्मपरिणतिरूपाः कर्मबर्गणायोग्या बध्यन्ते, न तु-बादराः-बादरपरिणतिशालिनः पुद्गलाः । अत्र सूक्ष्मार्थस्तावदापेक्षिकत्वाद्बहुविधो भवति, । परमाणुप्रभृत्यनन्तप्रदेशवर्गणायामपि भूयोऽनन्तराशिप्रदेशात् केचन ग्रहणयोग्या भवन्ति, केचन पुन ग्रहणयोग्या न भवन्ति । तस्मात्-सूक्ष्मग्रहणेन क्रमश औदारिक-वैक्रियाऽऽहारक-तैजस-भाषा-प्राणा-ऽपान-मनोवर्गणा उल्लंध्य कर्मवर्गणायोग्याः सूक्ष्मपरिणतिशालिन एव पुद्गला बध्यन्ते इतिभावः । उक्तक्रमेण सूक्ष्मपरिणतिभाजः केचन–पुद्गला भवन्ति ।४। ___ अथ पञ्चमप्रश्नोत्तराशय उच्यते ___ एक क्षेत्रावगाढा एव पुद्गला बध्यन्ते, न तु-क्षेत्रान्तरावगाढाः, एकस्मिन्नभिन्ने क्षेत्रे जीवप्रदेशैः सह येऽवगाढा आश्रिताः पुद्गला भवन्ति–त एव बध्यन्ते । तथाच-यत्राकाशे जीवोऽवगाढो भवति तत्रैव ये कर्मवर्गणायोग्याः पुद्गला अवगाढाः सन्ति, तेषामेव पुद्गलानां बन्धो भवति-न तु-क्षेत्रान्तरावगाढानाम् । आत्मावगाढाकाशक्षेत्रे वर्तमानाः पुद्गलाः आत्मवृत्तिरागादिस्नेहगुणयोगादात्मनि लगन्ति, आत्मानवगाढाकाश क्षेत्रावगाढास्तु-आत्मानाश्रितत्वेन तद्भावपरिणत्यभावात् आत्मनि नो लग्नानि भवन्ति । सम्प्रति-षष्ठ प्रश्नोत्तराऽभिप्राय उच्यते--स्थिताः-स्थितिपरिणता एव पुद्गलाः कर्म चौथे प्रश्नोत्तर का आशय-सूक्ष्म परिणमनवाले कार्मणवर्गणा के पुद्गलों का ही बन्ध होता है, बादर परिणमन वाले पुद्गलों का बन्ध नहीं होता । सूक्ष्म शब्द का अर्थ आपेक्षित होने से अनेक प्रकार का होता है। परमाणु से लेकर अनन्तप्रदेशी वर्गणा में भी सूक्ष्म शब्द का प्रयोग किया जा सकता है। उन अनन्त प्रदेशी वर्गणाओं में कोई-कोई कर्म रूप में ग्रहण करने के योग्य होती हैं, कोई ग्रहण करने योग्य नहीं होती। अतएव 'सूक्ष्म' शब्द को ग्रहण करने का आशय यह है कि क्रमशः औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस, भाषा, श्वासोच्छ्वास और मनोबर्गणा को लांघकर कार्मणवर्गणा के योग्य सूक्ष्म परिणमन वाले पुद्गलों का ही बन्ध होता है। उक्त क्रम से कोई-कोई पुद्गल सूक्ष्म परिणमन वाले होते हैं। पाँचवें प्रश्न और उत्तर का आशय-एक क्षेत्र में अवगाढ पुद्गलों का ही बन्ध होता है अन्य क्षेत्रमें अवगाढ पुद्गलोंका बंध नहीं होता है । जो पुद्गल जीव प्रदेशों के साथ अभिन्न क्षेत्र में रहे हुए होते हैं, वही बद्ध होते हैं । भिन्न क्षेत्र में रहे हुए कर्मपुद्गल भिन्न क्षेत्र में स्थित जीवप्रदेशों के साथ नहीं बँधते हैं। छठे प्रश्न और उत्तर का अभिप्राय-कार्मण वर्गणा के जो पुद्गल स्थित होते हैं अर्थात् શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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