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________________ दीपिकनियुक्तिश्च अ. १ नवतत्वनिरूपणम् २३ ताण्ड-सूक्ष्मभेदेना-ऽष्टविधाः सूक्ष्मा जीवा । तद्भिन्नाः पृथिवीकायादयो बादरा जीवा-अनेकविधाः सन्ति । मुक्ताजीवास्तु-न सूक्ष्माः नापि बादरा नो वा-ते त्रसाः, नापि स्थावरा इति भावः। सूत्र ६॥ नियुक्तिः-पूर्व सूत्रे-संसारिजीवानां त्रसस्थावरभेदेन द्वैविध्यं प्ररूपितम्, सम्प्रति तेषामेव प्रकारान्तरेण पुन द्वैविध्यं प्रतिपादयति “ तं दुविहा सुहुमा-बायरा य-इति । ते पुनः संसारिणो जीवा द्विविधाः---द्वि प्रकारकाः भवन्ति सूक्ष्माः-बादराश्च । तथा चोक्तम् दश वैकालिके-अध्ययने १५ गाथायाम्-"सिहेणं पुप्फसुहमं च पाणुत्तिंगं तहेव य पणगं बीयहरियं च अंडसुहुमं च अट्ठमं ॥१॥ "स्नेहं पुष्पसूक्ष्मं च प्राण्युत्तिङ्गं तथैव च । पनकं बीजहरितं च अण्डसूक्ष्मं च अष्टमम् ॥१॥ बादराणान्तु जीवानां पृथिवीकायिकादिभेदेनाऽनेकविधत्वमवगन्तव्यम् । तत्र-शुद्ध पृथिवी, शर्करा पृथिवी, बालुकापृथिवी, उपल, शिला, लवण, त्रपु, ताम्र, सीसक, रजत, सुवर्ण, हरिताल, हिगुल, मनःशिला, सस्यका,-ऽञ्जन, प्रवाल,-ऽऽभ्रपटलाऽभ्रवालिका, गोमेद, रुचकाङ्ग, स्फटिक, लोहिताक्ष, मरकत, मसार, गल्ल, भुजगेन्द्र, नील, चन्दन, गैरिक, हंसगर्भ, पुलक, सौगन्धिक, चन्द्र, सूर्यकान्त, वैडूर्य, जलकान्त, प्रभृतयो बादरपृथिवीकायिकभेदा अवगन्तव्याः॥ इनमेंसे सूक्ष्म जीव आठ प्रकार के हैं, यथा (१) स्नेह सूक्ष्म ( २ ) पुष्पसूक्ष्म ( ३ ) प्राणिसूक्ष्म ( ४ ) उत्तिंगसूक्ष्म (५) पनकसूक्ष्म (६) बीजसूक्ष्म (७) हरितसूक्ष्म (८) अण्डसूक्ष्म । इनसे भिन्न पृथ्वीकाय आदि बादर जीव हैं जो अनेक प्रकार के हैं । मुक्तजीव न सूक्ष्म हैं, न बादर हैं, न त्रस हैं और न स्थावर ही हैं ॥६॥ तत्त्वार्थनियुक्ति- पूर्वसूत्र में संसारी जीवों के त्रस और स्थावर के भेद से दो प्रकार कहे हैं । अब इन्हीं के प्रकारान्तर से दो भेदों का प्रतिपादन करते हैं-संसारी जीव दो प्रकार के हैं-सूक्ष्म और बादर दशवैकालिक के आठवें अध्ययन की गाथा १५ में कहा है - आठ सूक्ष्म इस प्रकार हैं-स्नेहसूक्ष्म, पुष्पसूक्ष्म, प्राणिसूक्ष्म, उत्तिंगसूक्ष्म पनकसूक्ष्म, बीजसूक्ष्म, हरितसूक्ष्म, और आठवाँ अण्डसूक्ष्म । [ यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि यहाँ जो आठ सूक्ष्म बतलाए गए हैं, वे सूक्ष्मनामकर्म के उदय की अपेक्षा से नहीं हैं, बल्कि परिमाण की अपेक्षा से हैं; ये आठ सूक्ष्म सामान्य तौर से दृष्टिगोचर नहीं होते; इस कारण इन्हें सूक्ष्म कहा गया है। ] बादर जीव पृथ्वीकाय आदि के भेद से अनेक प्रकार के हैं । शुद्ध पृथिवी, शर्करा पृथिवी, बालुकापृथिवी, इसी प्रकार उपल, शिला, लवण, त्रपु, ताम्र, शीशा, रजत, स्वर्ण, हडताल, हिंगुल, मैनसिल, सस्यक, अंजन, प्रवाल, अभ्रपटल, अभ्रवालिका, गोमेद, रुचकांग, स्फटिक, लोहिताक्ष, मरकत, मसारगल्ल, भुजगेन्द्र, नील, चन्दन, गैरिक, हंसगर्भ, पुलक, सौगन्धिक, चन्द्रकान्त, सूर्यकान्त, वैडूर्य, जलकान्त आदि बादरपृथ्वीकायिक जीवों के भेद हैं । શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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