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________________ ४१२ तत्त्वार्थसूत्रे तत्त्वार्थनियुक्तिः- पूर्वसूत्रपञ्चकेन ज्ञानावरणादिकर्मणामुत्कृष्टा जघन्या च स्थितिः प्ररूपिता, सम्प्रति-क्रमप्राप्तमनुभावबन्धं विशेषलक्षणपूर्वकं प्ररूपयितुमाह-"कम्माणं विवागो अणु भावो-" इति । कर्मणां-ज्ञानावरणादिमूलप्रकृतीनां मतिज्ञानावरणादीनामुत्तरप्रकृतीनाञ्च सर्वेषां कर्मणां विपाकः-विपचनं फलम् उदयावलिकाप्रवेशोऽनुभाव उच्यते । ज्ञानावरणादिकर्मणां विशिष्टो-नानाविधो वा पाको विपाकः, वक्ष्यमाणकषाय-तीव्र-मन्दादिभावविशेषाद् विशिष्टः पाको विपाकः, । यद्वा-द्रव्यक्षेत्रकालभावभवलक्षणनिमित्तभेदजनितनानाविधः पाको विपाकः-अनुभवरूपोऽनुभावः । तत्र–प्रशस्ताप्रशस्तपरिणामानां तीव्र-मन्दादिविपाकः पूर्वोक्तज्ञानावरणादिकर्मजनितसुख-दुःखफलविशेषाऽनुभवनमनुभावः । तत्र--शुभपरिणामानां प्रकर्षभावाच्छुभप्रकृतीनां कर्मणां प्रकृष्टोऽनुभवः अशुभप्रकृतीनां निकृष्टः । अशुभपरिणामानां प्रकर्षभावादशुभप्रकृतीनां प्रकृष्टोऽनुभवः, शुभप्रकृतीनां निकृष्टोऽनुभवो भवतीतिभावः । यद्वा येन करणभूतेन बन्धनमनुभूयते-आत्मनाऽसावनुभावः, अनुगतोवा भावोऽनुभावः, सर्वासामेव कर्ममूलोत्तरप्रकृतीनां फलं विपाकोदयावलिकाप्रवेशरूपाऽनुभावाज्जोवस्याऽनुसमयमिच्छा-ऽनिच्छापूर्वकं कर्मानुभवनं भवति । तत्र-ज्ञानावरणकर्मणः फलं ज्ञानाभावः, दर्शनावरणस्य कर्मणः फलं तावद् दर्शनशत्तय तत्त्वार्थनियुक्ति--पिछले पाँच सूत्रों में ज्ञानावरण आदि कर्मों की उत्कृष्ट और जघन्य स्थिति की प्ररूपणा की गई है, अनुक्रम से प्राप्त अनुभावबन्ध का विशिष्ट लक्षण बतलाते हुए प्ररूपण करते हैं-ज्ञानावरण आदि मूल प्रकृतियों का तथा मतिज्ञानावरण आदि उत्तरप्रकृतियों का-सभी कर्मों का विपाक-फल या उदयावलिका में प्रवेश अनुभाव कहलाता है । ___ ज्ञानावरण आदि कर्मों का विशिष्ट या विविध प्रकार का पाक विपाक कहलाता है । अथवा द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और भव रूप निमित्तकारणों के भेद से उत्पन्न नाना प्रकार का पाक विपाक-अनुभवरूप अनुभाव कहलाता है। प्रशस्त और अप्रशस्त परिणामों का तीव्र मन्द आदि विपाक, जो पूर्वोक्त ज्ञानावरण आदि कर्मों के द्वारा जनित सुख-दुःख आदि फल रूप होता है, उसका अनुभव करना अनुभाव है। शुभ परिणामों का प्रकर्ष होने से शुभ कर्म प्रकृतियों में उत्कृष्ट अनुभाव उत्पन्न होता है। और अशुभ कर्म प्रकृतियों में निकृष्ट-कम अनुभाव उत्पन्न होता है । जब अशुभ परिणामों में प्रकर्ष होता है तो अशुभ कर्मप्रकृतियों तीव्र अनुभाव और शुभ प्रकृतियों में मन्द अनुभाव उत्पन्न होता है। अथवा जिसके कारण आत्मा बन्ध का अनुभव करता है उसे अनुभाव कहते है। या अनुगत भाव अनुभाव कहलाता है । जब पूर्वबद्ध कर्म उदयावलिका में प्रविष्ट होता है, तो जीव को इच्छा से या अनिच्छा से अनुसमय-प्रतिसमय-उसे भोगना ही पड़ता है। ज्ञानावरण कर्म का फल ज्ञान का अभाव होता है। दर्शनावरण का फल दर्शनशक्ति શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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