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दीपिकानिर्युषितश्च अ २ सू २१
पुद्गलमे दनिरूपणम् २६९
" संबंधयार - उज्जोओ पभाछायातवो वा । वण्णरसगंधफासा पुग्गलाणं तु लक्खणं ॥ १२ ॥ " एगतंच पुहुत्तं च संखासंठाणमेव च । संजोगाय - विभागाय पज्जवाणं तु लक्खणं ॥ १४ ॥ छाया - "शब्दान्धकारउद्द्योतः प्रभाछायाऽऽतप इति वा । वर्णरसगन्धस्पर्शाः पुद्गलानान्तु लक्षणम् ।
" एकत्वञ्च पृथक्त्वञ्च संख्यासंस्थानमेव च । संयोगाश्च विभागाश्च पर्यवाणां तु लक्षणम् || इति ॥२०॥ मूलसूत्रम् – “पोग्गला दुविहा परमाणुणो खंदाय " ॥२१॥ छाया - पुद्गलाः द्विविधाः परमाणवः स्कन्धाश्च -
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॥२१॥
तत्वार्थदीपिका - पूर्वोक्ता रूप-रस- गन्ध - स्पर्श- परिणतिशालिनः पुद्गला द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, परमाणवः - स्कन्धाश्च । तथा च - पुद्गलजातीयत्वे सत्यपि निरवयव - सावयवभेदेन प्राप्तानन्त्येऽपि तेषां स्थूल–सूक्ष्मभेदेन द्वैविध्यमवगन्तव्यम् । तत्र - परमाणुपुद्गला अस्मदादीन्द्रियव्यापारातीताः केवलसंशब्देन समधिगम्या भवन्ति तेषां निरवयवत्वात् - सूक्ष्मत्वाच्च ।
स्कन्धपुद्गलाश्च–ग्रहणादानादिव्यपार समर्थाः भवन्ति, स्थूलत्वात् - सावयवत्वाच्चेति भावः ।
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समाधान—जैसे गवाक्ष में रजः कण दिखलाई देते हैं पर उनका स्पर्श प्रतीत नहीं होता, उसी प्रकार अन्धकार का परिणमन ऐसा विलक्षण है कि हमें उसके स्पर्श की प्रतीति नहीं होती । जैसे अग्नि के साथ जल का विरोध है, वैसे ही प्रकाश के साथ अन्धकार का विरोध है । किसी बराण्डे में रक्खे हुए दीपक की रश्मियों का उपघात पुष्करावर्त्त मेघ की मूसल जैसी धाराएँ भी नहीं कर सकतीं । अतएव जल और अनल (अग्नि) का सर्वथा ही विरोध हो यह बात नहीं है अपितु उत्पत्तिस्थान में ही उनका विरोध होता है ।
अगर अन्धकार पौलिक न होता तो उसके साथ प्रकाश का विरोध भी नहीं हो सकता था । उत्तराध्ययन सूत्र वें अध्ययन में कहा है
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'शब्द, अन्धकार, उद्योत प्रभा, छाया, आतप, वर्ण, रस, गंध, और स्पर्श यह सब पुद्गलों के लक्षण हैं ।
'एकत्व, पृथक्त्व, संख्या, संस्थान, संयोग और विभाग, ये सब पर्यायों के लक्षण हैं ॥ २० ॥ मूलसूत्रार्थ -- "पोग्गला दुविहा" इत्यादि । सूत्र २१
पुद्गल दो प्रकार के होते हैं परमाणु और स्कंध ॥२१॥
तत्त्वार्थदीपिका - पूर्वोक्त रूप, रस, गंध और स्पर्श वाले पुद्गल दो प्रकार के कहे गए हैं- परमाणु और स्कन्ध । यद्यपि इन दोनों में पुद्गलत्व जाति समान है, फिर भी अवयवविहीन (रहित) होने से अणु सूक्ष्म है और सावयव होने से स्कंध स्थूल होता है । यही दोनों में अन्तर है । परमाणु हमारी इन्द्रियों से अगोचर हैं, सिर्फ अनुमान और आगम से
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧