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दीपिकानिर्युक्तिश्च अ० २ सू २०
पुद्गलानां परिणामनिरूपणम् २६३ ध्वन्यात्मको वर्णात्मको वा शब्द: पुद्गलद्रव्यपरिणामो भवति । तस्य - पुद्गलद्रव्यपरिणामता च मूर्तत्वादवसेया । मूर्तत्वञ्च - द्रव्यान्तरविक्रियापादनसामर्थ्यात् सिध्यति, पिप्पलादिवत् ।
एवं शङ्खादिशब्दानामतिमात्रप्रवृद्धानां श्रवणबधिरीकरणसामर्थ्यं भवति, तच्च - सामर्थ्यं न गगनादौ अमूर्ते संभवति । एवं गिरिप्रतिहताऽश्मवत् - शब्दस्य प्रतिपर्यायत्वात् आतपवत्-द्वारानुसारित्वात्, तृणपत्रादिवत् - वायुना प्रेर्यमाणत्वात्, प्रदीपवत् — सर्वदिग्ग्राह्यत्वात्, तारासमुदायवत् — अभिभूयमानत्वात्, रविमण्डलप्रकाशवत् - अभिभावकत्वात्, महता शब्देनाऽल्पशब्दस्याsभिभूयमानत्वदर्शनात्. ।
तस्मात्-शङ्खः पुद्गलद्रव्यपरिणामः सिद्धः । न तु - वैशेषिकाभिमतः आकाशस्य क्षणिको गुणः शब्दः, पूर्वोक्तरीत्याः शब्दस्य मूर्तत्वसिद्धेः मूर्तस्य गुणत्वाभावात् । मूर्तस्य शब्दस्याकाशगुणत्वं नोपपद्यते, न हि रूपादय आकाशस्य गुणाः सन्तीति व्यपदिष्यते । इति पुद्गलानामेव तथाविधः शब्दपरिणामो भवतीति द्रष्टव्यम् । ततश्च - शब्द: कथञ्चिद्रव्यं कथञ्चिद्गुणः सम्भवति, परिणामस्य परिणामिनोऽर्थान्तराऽभ्युपगमात् सर्ववस्तुनां द्रव्यपर्यायात्मकत्वात् । एवं तर्हि - स्यापि केनचिदाकारेण शब्दो गुणः स्यादिति चेन्मैवम् - नामाकाशादिविवक्षावशात्-"अनेकान्तवादिनोऽदोषः ।
-आकाश
इस कारण शब्द चाहे ध्वन्यात्मक हो, चाहे वर्णात्मक, वह पुद्गल का ही परिनाम - पर्याय है । मूर्त्त होने के कारण उसे पुद्गल द्रव्य का परिणाम समझना चाहिए और शब्द मूर्त्त है क्योंकि वह अन्य द्रव्यों में विकार उत्पन्न करने में समर्थ है, जैसे पिप्पल आदि । शंख आदि का अत्यन्त तीव्र शब्द कानों को बधिर कर देता है । अमूर्त आकाश आदि में ऐसा सामर्थ्य नहीं हो सकता । इसी प्रकार शब्द मूर्त्त है क्योंकि पर्वत से टकराए हुए पाषाण की तरह पीछे लौटता है - प्रतिध्वनित होता है; आतप के समान द्वार का अनुसरण करता है, तृणों एवं पत्रों के समान वायु के द्वारा प्रेरित होता है, दीपक के समान सभी दिशाओं में ग्रहण किया जाता है, तारागण के समान अभिभूत होता है और सूर्य मंडल के समान दूसरों का अभिभव करता है । तात्पर्य यह है कि जैसे सूर्य के प्रकाश से ताराओं का प्रकाश अभिभूत (छुप जाना) हो जाता है, अतएव वह मूर्त्त है, इसी प्रकार मंद शब्द तीव्र शब्द के द्वारा अभिभूत हो जाता है, इस कारण शब्द मूर्त है । इन सब हेतुओं से यह सिद्ध होता है कि शब्द पुद्गल द्रव्य का पर्याय है । पुद्गल द्रव्य का पर्याय होने के कारण उसका मूर्तत्व भी सिद्ध है । ऐसी स्थिति में वैशेषिकों ने शब्द को आकाश का जो गुण माना है सो समीचीन नहीं है मूर्त शब्द अमूर्त आकाश का गुण नहीं हो सकता, जैसे कि रूप आदि आकाश के गुण नहीं है ।
तथ्य यही है कि शब्द पुद्गल का ही परिणाम है । परिणाम परिणामी से अर्थात्
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧