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________________ दीपिकानियुक्तश्च अ. २ सू० ८ मूर्त्त पुद्गलानां प्रदेशपरिमाणनिरूपणम् २०५ दप्रदेशत्वं भवति एवमेकस्य विभागरहितस्य परमाणोरपि - अप्रदेशत्वमवगन्तव्यम् यत एकस्य परमाणोर्भेदं कश्चिदपि कर्त्तुं न शक्नोति । उक्तञ्च – “परमाणोः परं नाल्पं नभसो न परं महत्-" इति, तस्मात् - अणोरपि अणीयान्, अपरो न विद्यते कथमणोः प्रदेशा भिद्यन्ते इतिफलितम् । परमार्थतस्तु - अणोरापूरकाः परिणामिकारणभावभाजो द्रव्यरूपाः प्रदेशा न भवन्ति । यदि परमाणोरपि प्रदेशाः स्युः तदा परमाणुरन्त्यः प्रदेशोऽस्तीति प्रतीतिविरोधः स्यात् । उक्तञ्च प्रज्ञापनायां ५–पदे– “रूवि अजीवदव्वाणं भंते ! कइविहा पण्णत्ता ? गोयमा - ! चउव्विहा पण्णत्ता, तंजहा - खंधा - १ खंददेसा - २ खंधप्पएसा - ३ परमाणुपोग्गला ४ अनंता परमाणुपोग्गला, अणंता दुप्पएसिया खंधा, जाव अणता दसपएसिया खंधा, अनंता संखेज्जपएसिया खंधा, अनंता असंखेज्जपएसिया खंधा, अनंता अणतपएसिया खंधा -" इति रूपीणि अजीवद्रव्याणि खलु भदन्त ! कतिविधानि प्रज्ञप्तानि गौतम ! चतुर्विधानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-स्कन्धाः, स्कन्धदेशाः स्कन्धप्रदेशाः परमाणुपुद्गलाः, अनन्ताः परमाणुपुद्गलाः, अनन्ताः द्विप्रदेशिकाः स्कन्धाः, यावत् - अनन्ता दशप्रदेशिकाः स्कन्धाः, अनन्ताः संख्ये यप्रदेशिकाः स्कन्धाः, अनन्ताः असंख्येयप्रदेशिकाः स्कन्धाः अनन्ताः अनन्तप्रदेशिकाः स्कन्धा इति ॥ ८ ॥ मूलसूत्रम् - " धम्माधम्मागासकालपोग्गलजीवा लोगो - " ॥९॥ छाया - "धर्माऽधर्माकाशकालपुद्गलजीवा लोकः - " ॥९॥ हित एक परमाणु में भी प्रदेश नहीं होते । एक परमाणु का विभाग कोई नहीं कर सकता । कहा भी है- 'परमाणु से छोटा और आकाश से बड़ा कोई पदार्थ नहीं है ।' ऐसी स्थिति में अब अणु से छोटा कोई द्रव्य हो ही नहीं सकता तो अणु में प्रदेशभेद किस प्रकार संभव होसकता है ? वास्तव में अणु में पूर्ति करने वाले, परिणामिकारण मूल द्रव्य नहीं होते हैं । अगर परमाणु के भी प्रदेश होते तो वह अन्त्य नहीं कहलाता अर्थात् उसे निर्विभाग नहीं कहा जा सकता था । प्रज्ञापनासूत्र के पाँचवे पदमें कहा है प्रश्न- भगवन् ! रूपी अजीवद्रव्य अर्थात् पुद्गल कितने प्रकार का कहा है ! यावत् दश प्रदेशी स्कंध अनन्त हैं, उत्तर - गौतम ! चार प्रकार का कहा है - ( १ ) स्कंध और (४) परमाणु पुदगल अनन्त हैं, द्विप्रदेशी स्कंध अनन्त हैं, संख्यात प्रदेशी स्कंध अनन्त हैं, असंख्यात प्रदेशी स्कंध अनन्त हैं, अनन्तप्रदेशी स्कंध अनन्त हैं ||८|| मूलसूत्रार्थ - 'धम्माधम्मागास' इत्यादि सूत्र ॥ ९॥ धर्म, अधर्म, आकाश, काल, पुद्गल और जीव, ये छह द्रव्य ही लोक कहलाते हैं ||९|| શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧ (२) स्कंध देश (३) स्कंध प्रदेश
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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