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________________ १७६ तत्त्वार्थसत्रे थिकाए, आगासथिकाए पोग्गलत्थिकाए" इति । चत्वारोऽस्तिकायाः अजीवकायाः प्रज्ञप्ताः, तयथा धर्मास्तिकायः, अधर्मास्तिकायः, आकाशास्तिकायः पुद्गलास्तिकाय इति । प्रकृतसूत्रे तु-केवलम् अजीवा इत्येवोक्तम् अतएवात्र-अजीवपदेन कायस्यापि ग्रहणाद् धम ऽधर्माऽऽकाशकालपुद्गला इत्येते पञ्च तावद् अजीवाः सन्तीति फलितम् । तत्र प्रशस्ताभिधानाद् धर्मग्रहणं प्रथमं कृतम् तदनन्तरं लोकव्यवस्थाहेतुत्वात् तद्विपरितत्वाद् वा अधर्मग्रहणम् , तदनन्तरं लोकत्वात् तत्परिच्छेद्यस्याऽऽकाशस्य ग्रहणम्, तदनन्तरममूर्तसाधर्म्यात् कालग्रहणम्, ततश्वा-ऽऽकाशमिति विशिष्टक्रमसन्निवेशप्रयोजनमेतदवगन्तव्यम् ॥१॥ मूलसूत्रम् "एयाणि दव्वाणि य छ—'' ॥२॥ छाया “एतानि द्रव्याणि च षट्-'" ॥२॥ तत्त्वार्थदीपिका-एतानि धर्माधर्माकाशकालपुद्गलरूपाणि पञ्च वस्तूनि चकाराज्जीवश्चेत्येतानि षड् द्रव्याणि वर्तन्ते एवञ्च धर्मादयःपञ्च, जीवश्चेति षड् द्रव्याणि भवन्तीति भावः । उक्तञ्च ---"अनुयोगद्वारे" द्रव्यगुणप्रकरणे "छबिहे दव्वे पण्णत्ते तंजहा-धम्मत्थिकाए' अधम्मत्थिकाए, आगासथिकाए, जीवत्थिकाए,पुग्गलत्थिकाए, अद्धासमये य, से तं दवणामे-" इति । छाया-षड्विधं द्रव्यं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा-धर्मास्तिकायः, अधर्मास्तिकायः, आकाशास्तिकायः, जीवास्तिकायः पुद्गलास्तिकायः, अद्धासमयश्च, तदेतद् द्रव्यनाम, इति ॥२॥ नहीं किया है। स्थानांगसूत्र के चौथे स्थानक के प्रथम उद्देशक में कहा है-चार अस्तिकाय अजीवकाय कहे गये हैं, वे ये हैं -धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय । ___ प्रस्तुत सूत्र में केवल :अजीवा' इतना ही कहा है, अतएव 'अजीव' पद से काल का भी ग्रहण हो जाता है । फलितार्थ यह है कि धर्म, अधर्म, आकाश, काल और पुद्गल ये पाँच अजीव हैं । इनमें प्रशस्त नाम होने से सर्व प्रथम धर्म को ग्रहण किया हैं, फिर धर्म से विपरीत होने के कारण अधर्म को, तत्पश्चात् लोक होने से उनके द्वारा परिच्छेद्य आकाश का और तदन्तर अमूर्त्तत्व के लिहाज से समान होने के कारण काल का ग्रहण किया गया है ! यह सूत्र के विशिष्ट क्रमसन्निवेश का प्रयोजन समझ लेना चाहिए ॥१॥ मूलसूत्रार्थ—'एयाणि दव्वाणि य' सूत्र ॥२॥--ये ही छह द्रव्य हैं ॥२॥ तत्त्वार्थदीपिका-ये धर्म, अधर्म, आकाश, काल, और पुद्गल और 'च' चब्द से जीव ये सब मिलकर छह द्रव्य कहलाते हैं । भाव यह है कि धर्म आदि पाँच और जीव ये छह द्रव्य हैं। अनुयोगद्वार में द्रव्यगुण प्रकरण में, कहा है'द्रव्य छह कहे गये हैं --धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और अद्धासमय यह द्रव्यनाम का निरूपण हुआ ॥२॥ શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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