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________________ तत्त्वार्थसूत्रे तत्यार्थनियुक्ति:-पूर्वोक्तजन्मसु यथोक्तयोनीनां जीवानां कानि शरीराणि कियन्ति वा किं लक्षणानि वा भवन्तीतिप्ररूपयितुमाह—सरीराइं पंच, ओरालिय-वेउव्विय-आहारगतेयग-कम्माई,, इति। शरीराणि-विशीर्यन्ते प्रतिक्षणमिति शरीराणि जीर्यमाणत्वात्-चयापचयवत्वाच्च विशरारुता युक्तानि शरीराणि पञ्चसंख्यकानि भवन्ति । तद्यथा-औदारिक-वैक्रिय-आहारक-तैजस-कार्मणानि एतानि च शरीराणि यथायोग्यं नारकादि गति चतुष्टयवर्तिनामेव जीवानां सम्भवन्ति न सिद्धानाम् इतिसामर्थ्यात् प्रतिपादयितुमादौ शरीरग्रहणं कृतम् विशरणशीलत्वाद् विशरारुत्वा च्छरीराणि इत्यन्वर्थसंज्ञाबलात् लब्धविनश्वरत्वरूपार्थयुक्तशरीरस्य सिद्धानामसम्भवात् । अतएव-शरीरशब्दापेक्षया कायशब्दोपादाने लाघवसत्वेऽपि कायग्रहणं न कृतम् । शरीरशब्देनान्वर्थता प्रतिपादनद्वारा विशरारुतार्थस्य प्रतिवित्सितस्य प्रतिपादितत्वात् । तथाच-औदारिक, वैक्रियम्आहारकं तैजसं-कार्मणं चैतानि पञ्च शरीराणि संसारिणां प्राणिनां भवन्ति । तथाचोक्तम्-प्रज्ञापनायां शरीरपदे २१--एकविंशतिसंख्यके "कइ णं भंते-१ सरीरा पण्णत्ता -३ गोयमा ! पच सरीरा पण्णत्ता तंजहा–ओरालिए, वेउन्विए, आहारए, तेयए, कम्मए," कति खलु भदन्त-१ शरीराणि प्रज्ञप्तानि-३ गौतम–१ पञ्च शरीराणि प्रज्ञप्तानि तद्यथा -औदारिकम्, वैक्रियम्, आहारकम् , तैजसम्, कार्मणम् इति । तत्त्वार्थनियुक्ति-पूर्वोक्त जन्मों में, पूर्वोक्त योनियों वाले जीवों के कौन से और कितने शरीर होते हैं ? उन शरीरों के लक्षण क्या है ? यह बतलाने के लिए कहते हैं शरीर पाँच हैं-औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मण। क्षण-क्षण में शीर्ण-जीर्ण, विनाशशील होने से एवं चय और अपचय वाले होने से शरीर संज्ञा प्रदान की गई है। शरीर पाँच हैं जिनका नामनिर्देश ऊपर किया गया है । ये पाँच शरीर नरक आदि चार गतियों के जीवों के ही होते हैं, सिद्ध जीवों के नहीं । सिद्ध जीव समस्त कर्मों से रहित होने के कारण समस्त शरीरों से भी रहित होते हैं। इस तथ्य को प्रकट करने के लिए सूत्र की आदि में 'शरीर' शब्द का प्रयोग किया गया है। शरीर शब्द का अर्थ है जो विनाशील हो, क्षण-क्षण में पलटता रहे । ऐसा विनाशशील शरीर सिद्धों में नहीं पाया जा सकता । यही कारण है कि शरीर शब्द की अपेक्षा काय शब्द छोटा है और उसका प्रयोग किया गया होता तो सूत्र में लघुता होता, फिर भी उसका प्रयोग नहीं किया । शरीर शब्द का, बड़ा होने पर भी प्रयोग किया गया है सो उसकी विनश्वरता प्रकट करने के लिए ही। तात्पर्य यह है कि संसारी जीवों के पाँच प्रकार के शरीर होते हैं- औदारिक, वैक्रिय, आहारक तैजस और कार्मण । प्रज्ञापनासूत्र के एकवीसवें २१ शरीरपद में कहा है प्रश्न-भगवन् ! शरीर कितने कहे हैं ? उत्तर--गौतम ! पाँच शरीर कहे हैं-(१) औदारिक (२) वैक्रियक (३) आहारक (४) तैजस और (५) कार्मण । શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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