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________________ तत्त्वार्थसूत्रे अत्रोच्यते-तिलतैलवत् न विग्रहगतौ कर्मयोगव्याप्तत्वं विवक्षितम् अपितु-विषयमात्र विवक्षितम् , यथा-खे पक्षी, जले मत्स्यः, तथा-विग्रहगतौ कर्मयोग इति व्यपदिश्यते । अन्यथाद्विविग्रहायां त्रिविग्रहायां वा गतावाऽऽद्यन्तयोरपि समययोः कार्मणयोगः प्राप्येत । किन्तुद्विविग्रहायां मध्यमसमये त्रिविग्रहायां गतौ पुनर्मध्यमयो ईयोरपि समययो रिष्यते । अथैवमपि विग्रहगतिसमापन्नस्य जीवस्य कार्मणेन योगेन भवान्तरसंक्रमणं भवतीति लभ्यते तत्कथं विग्रहगतौ निरुपभोगताप्रतिपादिता, भवान्तरसंक्रमणस्यापि-उपभोगरूपत्वात् इतिचेत्-? उच्यते सुखदुःखयोविशिष्टोपभोगस्य कर्मबन्धानुभवस्य निर्जरालक्षणस्य प्रतिषिद्धत्वेन चेष्टारूपस्य कार्मणयोगस्य प्रतिषिद्धत्वाभावात् । अथैवमपि--जावं च णं भंते-? अयं जीवे एयइ वेयइ-चलइ फंदइ तावं च णं णाणावरणिज्जेणं जाव अंतराइएणं वज्झइत्ति--२ हंता गोयमा-! यावच्च खलु भदंत- अयं जीव एजते-व्येजते-चलति-स्पन्दते तावच्च ज्ञानावरणीयेन यावद् आन्तरयिकेण बध्यते इति, हन्त-गौतम-2 इति सूत्रेण विरोध आपद्यते कार्मणयोगकाले चास्ति चलनं तत्कथं बन्धादिलक्षणोपभोगस्य प्रतिषेधः कृतः इति चेदुच्यते भवस्थापेक्षयैव भगवता उक्तसूत्रस्य प्रणीतत्वात् ज्ञानावरणाद्यास्रवाणां भवस्थावस्थायामेव सद्भावात् किञ्च-समयद्वयं तावद्, अल्पः कालो वर्तते तत्रोपभोगाभिसंबन्धः संभवति । शंका - ऐसा मान लिया जाय तो भी तात्पर्य यह निकला कि विग्रहगति वाला जीव कार्मण काययोग के द्वारा ही भवान्तर में संक्रमण करता है, तो फिर विग्रह गति में निरुपभोगता का प्रतिपादन क्यों किया गया है ? भवान्तर में संक्रमण करना भी तो उपभोग ही है ! समाधान-~-यहाँ उपभोग का जो निषेध किया गया है सो सुख और दुःख के विशिष्ट उपभोग का, कर्मबन्ध के अनुभव एवं निर्जरा का निषेध किया गया है । चेष्टा रूप कार्मणयोग का निषेध नहीं किया गया है । शंका- ऐसा मानने में भी आगम से विरोध आता है । आगम में प्रश्न किया गया है कि-भगवन् ! यह जीव जब तक हिलता डुलता गमन या स्पन्दन करता है, तब तक क्या ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय कर्म का बन्ध करता है ? इसका उत्तर दिया गया है कि-हाँ गौतम ! जब तक जीव हिलता डुलता गमन स्पन्दन करता है तबतक वह ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय कर्म का बन्ध करता है । इसका उत्तर दिया गया है कि-हाँ गौतम ! जब तक जीव हिलता, डुलता गमन या स्पन्दन करता है, तब तक वह ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय कर्म का बन्ध करता है। ___ उक्त कथन में इस सूत्र से बाधा आती है। कार्मणयोग के समय चलन होता है तो फिर बन्ध आदि रूप उपभोग का निषेध क्यों किया गया है ? શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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