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________________ श्रीकल्प कल्प मञ्जरी ॥७४॥ टोका दव्वावसाणसमए चलयं न धाइ, पुत्तो इमो कुलगिहे किल को वि दीवो ॥१॥ एसो लोगुत्तरगुणगणजुओ मुओ पभूयप्पमोयं जणयइ । अवि य सीयलं चंदणं वुत्तं, तओ चंदो सुसीयलो। चंदचंदणओ सीओ, महं गंदणसंगमो॥२॥ सिया उ महुरा नूणं, सुहाइमहुरा तओ। तेहिं वि अस्स बालस्स, संगमो महुरो महं ॥३॥ कणगं सुहयं लोए, रयणं च महासुहं । तेहिं वि य महासोक्खो, अस्स बालस्स संगमो ॥४॥ सू० ६८॥ छाया-ततः खलु सा ललित-शीला-लङ्कत-महिला-कृति-कुशला त्रिशला कमनीयगुणजालं विशालभालं बालं विलोक्य समुच्छलद-मन्दा-नन्द-तरलतर-तरङ्ग-महास्नेह-वरुणगृह-निमामज्यमान-मानसा स्त्री-पुरुषलक्षणज्ञान-प्रविचक्षणा प्रतीतपुत्रलक्षणा तं स्तोतुमुपचक्रमे-किं गुणगणवर्जितैरनल्पैरपि तनयः, वरमेकोऽप्यतन्द्रः मूलार्थ – 'अह ललियसीलालंकिय'-इत्यादि । फिर उत्सव की समाप्ति के बाद वह शील से सुन्दर, महिलाओं के कर्तव्य में कुशल, उछलती हुई अत्यंत-चंचल आनन्द-रूपी तरंगों से युक्त महास्नेहरूपी समुद्र में तैरती हुई, खिले हुए कमल के समान मुखवाली, स्त्री-पुरुषों के शुभाशुभलक्षण जानने वाली, तथा बालक के लक्षण को पहचानने वाली त्रिशला रानी, सुन्दर गुणों से अलंकृत, विशाल भालवाले बालक की स्तुति करने लगी-- भूसा-'अह ललियसीलालंकिय' प्रत्या6ि. शारथी सु१२, सीमाना ४०य सुशण, भने Gondu એવા અત્યંત ચંચળ આનંદરૂપી તરંગોથી યુક્ત મહારનેહરૂપી સમુદ્રમાં હિલોળા ખાતી, ખીલેલાં કમળના જેવા મુખવાળી, સ્ત્રી-પુરુષના સારાં-નરસાં લક્ષણોને જાણવાવાળી, તેમજ બાળકના લક્ષણોને ઓળખવાવાળી ત્રિશલારાણી, સુંદર ગુણેથી સુશોભિત વિશાલભાલવાળા પિતાના બાળકની સ્તુતિ કરવા લાગી. त्रिशला कृत-पुत्रप्रशसा. ॥७४॥ KAPARAN શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૨
SR No.006382
Book TitleKalpsutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages509
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size37 MB
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