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विषयांकःपृष्ठाङ्कः। विषयांकः
पृष्ठाङ्क: २० इन्द्र द्वारा भगवान् को चरमतीर्थकर । | ३३ भगवान की शिविका (पालखी)का वर्णन १३२-१३३ रूप से प्रकाशित करना
| ३४ भगवान की शिविका को वहन करने का २१ भगवान का अपने प्रासाद में आना और
प्रकार का वर्णन
१३४ मातापिता का आनन्दित होना ११० ३५ सुरेन्दादि देवोंका पूर्वादि दिशाओंका २२ भगवान् के विवाह का वर्णन १११ क्रम से वहन करने का वर्णन १३५ २३ भगवान् के स्वमो का वर्णन
३६ देवेन्द्रादि द्वारा शिबिका में भगवान को २४ भगवान के मातापिता विगेरहका वर्णन ११६
ज्ञातखण्डोद्यान में लाना २५ दीक्षित होने के लिये भगवान् का नन्दि- | ३७ शिविका द्वारा भगवान् का ज्ञात
वर्धन के साथ का संवाद का वर्णन ११७-१२१ ___ खण्डोद्यान में आगमन १३७ २६ निश्चय ज्ञानवान् भगवान् का दो वर्ष
३८ भगवान का सर्व अलङ्कार का त्याग गृहस्थावास में स्थित होना १२२
करना और सामायिक चारित्र का २७ भगवान् को दीक्षा के लिये लोकान्तिक
एवं मनःपर्यवज्ञान की प्राप्ति का वर्णन १३८-१४० देवों की प्रार्थना
१२३ ३९ भगवान् का शक्रादि देवेन्द्रकृत अभि२८ भगवान् का वार्षिक दान, अभिनिष्क
नन्दन और भगवान् का अभिग्रह मण और शक्रादि देवों का आगमन १२४ धारण करने का वर्णन १४१ २९ दीक्षा के लिये लोकान्तिक देवों की
४० भगवान् का पञ्चमुष्टिक लुंचन करना भगवान से प्रार्थना
१२५-१२६ ___ और सामायिक चारित्र अंगीकार करने ३० भगवान ने वर्षीदान में दान दी हुइ
का वर्णन
१४२ सुवर्णमुद्राकी संख्या का वर्णन
४१ भगवान को मनःपर्यवज्ञानप्राप्ति का वर्णन १४३ न ३१ भगवान के अभिनिष्क्रमण में आये
४२ शक्रादि देव और मित्र स्वजन ज्ञात्यादि र हुवे इन्द्रादि देवों का वर्णन १२८ जाने के पीछे भगवान का अभिग्रह - ३२ भगवान का दीक्षामहोत्सव का वर्णन १२९-१३१ ग्रहण करना
१४४-१४५
શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૨