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________________ श्रीकल्प सूत्रे ॥५६८ मार्गेषु, त्रिकेषु मार्गत्रयमिलनस्थानेषु, चतुष्केषु-चतुर्मार्गमिलनस्थानेषु, चत्वरेषु-बहुमार्गमिलनस्थानेषु, चतुर्मुखेषु= चतुर्दारस्थानेषु, महापथेषु राजमार्गेषु, ग्रामस्थानेषु-उद्वासग्रामस्थानेषु, नगरस्थानेषु-उद्वासनगरस्थानेषु, ग्रामनिर्धमनेषु-ग्रामप्रणालीषु, नगरनिर्धमनेषु-नगरप्रणालीषु, निर्धमनं 'गटर'-इति लोके प्रसिद्धम् ; आपणेषु हटेषु, देव (१३) शृंगाटक-सिंघाड़े के आकार के तिकोने स्थान । (१४) त्रिक-जहाँ तीन रास्ते मिलते हों। (१५) चतुष्क-चौक, जहाँ चार रास्ते मिलते हों। (१६) चत्वर-जहां बहुत रास्ते मिलते हों। (१७) चतुर्मुख-जिन स्थानों के चार द्वार हों। (१८) महापथ-राजमार्ग-जिस रास्ते से राजा की सवारी निकले। (१९) ग्रामस्थान-उजड़ा ग्राम । (२०) नगरस्थान-उजड़ा हुआ नगर । (२१) ग्रामनिर्धमन-गाँव की नाली-गटर। (२२) नगरनिधमन-नगर की नाली। सिद्धार्थराजभवने त्रिजृम्भक देवकृतनिधानसमाहरणम् (૧૩) શૃંગાટક-શિગડાના આકારના ત્રિકણિયા સ્થાન. (१४) त्रियां ए २स्ता भजताय. (१५) यतु-या४-यां यार २स्ता भगता होय. (१६) यत्१२-४i ध। २स्ता भजता होय. (१७) यतु 4-7 स्थानाने यारद्वार डाय. (१८) महापथ-२४ भाग-2 रस्तेथी रागनी सवारी नाणे. (१८) भाभस्थान-Bars भाभ. (२०) नगरस्थान-Sers शर. (२१) श्राभनि मन-मनु नाणु-१८२ (२२) नानि भन-नगरनु नाणु ॥५६८॥ શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૧
SR No.006381
Book TitleKalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size41 MB
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