________________
श्रीकल्पसूत्रे ॥५६६।।
E
藏藏漢
वर्जितानि, खेटानि = धूलिमाकारपरिवेष्टितानि, कर्बटानि = कुत्सितनगराणि, मडम्बानि = सार्द्धक्रोशद्वयान्तर्ग्रामान्तररहितानि द्रोणमुखानि = जलस्थलमार्गयुक्ता जननिवासाः, पत्तनानि= समस्तवस्तुप्राप्तिस्थानानि पत्तनानि द्विविधानि - जलपत्तनानि, स्थलपत्तनानि च तत्र - जलपत्तनानि = नौकागम्यानि, स्थलपत्तनानि च शकटादिगम्यानि, यद्वा पत्तनानि शकटादिभिनभिर्वा गम्यानि, पहनानि तु नौमात्रगम्यानि ।
(२) आकर - सुवर्ण और रत्न आदि के निकलने के स्थान
(३) नगर ( नकर) - जहाँ अठारह तरह के कर वसूल न किये जाते हों ।
(४) खेट (खेड़ा) - धूल के प्राकार से घिरी छोटी-सी बस्ती ।
(५) कर्बट - कुत्सित नगर ।
(६) मडम्ब - जिसके इर्दगिर्द अडाई कोस तक दूसरी बस्ती न हो ।
(७) द्रोणमुख - जिस बस्ती में जाने का जल मार्ग भी हो और स्थलमार्ग भी हो।
(८) पत्तन - जहाँ सभी वस्तुएँ प्राप्त हो सकती हों। पत्तन दो प्रकार के होते हैं-जलपत्तन और स्थलपत्तन । जलपत्तन में नौका से ही पहुँचा जा सकता है और स्थलपत्तनमें गाड़ी आदि से । अथवा पत्तन वह बस्ती कहलाती है जहाँ गाड़ी आदि से जा सकें और पट्टन वह जहाँ केवल नौका से जाया जाय। कहा भी है
શ્રી કલ્પ સૂત્ર : ૦૧
(२) ४२ - सुवारी अने रत्न आदि नीडवानां स्थानो
(3) नगर (न४२ ) - क्या महार प्रहारना १२ वसूल न उराता होय.
(४) जेट (भेडा) - घूमना अटथी होरायेसी नानी खेवी वस्ती.
(4) उर्मट - मुत्सित नगर.
(૬) મડમ્બ- જેની આસપાસ અઢી કોસ સુધી બીજી વસ્તી ન હોય.
(૭) દ્રોણમુખ- જે વસ્તીમાં જવાના જળમાર્ગ પણ હોય અને સ્થળમાર્ગ પણ હોય.
(૮) પત્તન—જ્યાં બધી વસ્તુઓ મળી શકતી હાય. પત્તન એ પ્રકારનાં હોય છે-જળપત્તન અને સ્થળપત્તન. જળપત્તનમાં નૌકા વડે જ જઈ શકાય છે અને સ્થળપત્તનમાં ગાડી આદિથી જવાય छे. અથવા પત્તન તે વસ્તીને કહેવાય છે કે જયાં ગાડી આદિથી જઇ શકાય અને પટ્ટન એ કે જ્યાં ફકત નૌકા વડે જ જઈ શકાય. ४ पाछे
कल्प
मञ्जरी टीका
सिद्धार्थराजभवने
त्रिजृम्भक
देवकृत
निधान
समाहरणम्
॥५६६॥