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________________ श्रीकल्प कल्पमञ्जरी टीका ॥५०२॥ शशिकिरणसदृशो-ज्ज्वल-विमल-यशोधरः स्याद्वादभङ्गतरणनिरूपको विविधनय-कल्लोल-ललित-भजाला-न्तरालश्रुतधर्म-सलिल-संभृतो विविध-विमल-भावना-नदी-संगम-संजात-समुदय-समर्जित-गुणसमृद्ध-प्रवचन-प्ररूपकः सकलजनहितविधायकत्वेन न्यक्कृतपीयूष-हिता-मितगुणा-भिराम-मधुरातिमधुर-गिरा सम्पन्नो भविष्यति ॥सू०४१।। टीका--'खीरसायरदसणेणं' इत्यादि । क्षीरसागरदर्शनेन क्षीरसागरस्वमदर्शनेन असौ ज्ञानाद्यनन्तगुणरत्नाकर:-ज्ञानादयो येऽनन्तगुणास्त एव रत्नानि तेषामाकरः खनिः-आश्रयस्थानम्, माधुर्यगाम्भीर्यादिगुणगणालङ्कतः-माधुर्यवाण्यादीनां मधुरता, गाम्भीर्यम् अगाधता चादौ येषां ते तयाभूता ये गुणास्तेषां यो गणः समूहस्तेन अलङ्कतो-युक्तः, शशिकिरणसदृशोज्ज्वलविमलयशोधरः-शशिनः चन्द्रस्य ये किरणास्तत्सदृशम् उज्ज्वलं= रत्नों की खान होगा। मधुरता एवं गंभीरता आदि गुणों के समूह से शोभित होगा। चन्द्रमा की किरणों के समान शुभ्र एवं निर्मल यश का धारक होगा। स्याद्वाद के भंग-तरंगों का प्ररूपक होगा। विविध नयों रूपी कल्लोलों का सुन्दर भंगजाल जिसके मध्य में हैं, ऐसे श्रुतधर्मरूपी जल से परिपूर्ण होगा। अनेक प्रकार की निर्मल भावनारूपी नदियों के संगम से वृद्धि को प्राप्त और उस वृद्धि से उत्पन्न गुणों से समृद्ध प्रवचन की प्ररूपणा करनेवाला होगा। समस्त प्राणियों का हितकर्ता होने से अमृत से भी बढ़कर हितकारी, अपरिमित गुणों से रमणीय एवं मधुर से भी मधुर वाणी से सम्पन्न होगा ।सू० ४१॥ टीका का अर्थ-वीरसायरदसणेणं' इत्यादि । क्षीरसागर का स्वप्न देखने से वह बालक ज्ञान आदि अनन्त गुणरूपी रत्नों को खान होगा। वाणी आदि की मधुरता तथा अगाधता आदि गुणों के समुदाय से अलंकृत होगा। चन्द्र की किरणों के सदृश प्रकाशमान एवं निष्कलंक यश का धारक होगा। स्याद्वाद के भंगरूपी तरंगों का प्रवर्तक ખાણ થશે. મધુરતા અને ગંભીરતા આદિ ગુણેના સમૂહથી શભશે. ચન્દ્રમાનાં કિરણ જેવા શુત્ર અને નિર્મળ યશને ધારક થશે. સ્યાદ્વાદના ભંગતરંગેના પ્રરૂપક થશે. વિવિધ નરૂપી કલેલને સુંદર ભંગજાળ જેની મધ્યમાં છે, એવા શ્રતધર્મરૂપી જળથી પરિપૂર્ણ થશે. અનેક પ્રકારની નિર્મળ ભાવનારૂપી નદીઓના સંગમથી વૃદ્ધિ પામેલા અને તે વૃદ્ધિથી ઉત્પન્ન થયેલા ગુણો વડે સમૃદ્ધ પ્રવચનની પ્રરૂપણા કરનારા થશે. સર્વે પ્રાણીઓને હિતકર્તા હોવાથી અમૃતથી પણ વધારે હિતકારી, અપરિમિત ગુણોથી રમણીય અને મધુરમાં પણ મધુર વાણવાળે થશે (સૂ૦૪૧) टीना मथ-'खीरसायरदसणेण' त्या क्षीरसागरनुस्वप्न साथीतेमाणसानमासिनन्त गुण ३सीरत्नाની ખાણ થશે. વાણી આદિની મધુરતા તથા અગાધતા આદિ ગુણોના સમૂહથી શોભાયમાન થશે. ચન્દ્રના કિરણની જેમ પ્રકાશ क्षीरसागरस्वप्रफलम्. ॥५०२।। શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૧
SR No.006381
Book TitleKalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size41 MB
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