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श्रीकल्प
सूत्रे ॥५०॥
कल्पमञ्जरी टीका
निकरेणेव भ्रमरसमूहसदृशेन भव्यवृन्देन भव्यप्राणिनां समूहेन, तरङ्गणेव-तरङ्गसदृशेन समभावेन इष्टानिष्टादिषु सर्वत्र साम्येन, हंसादिविहङ्गमैरिव-हंसादिपक्षिसदृशैः संयतः साधुभिः, पुष्पवाटिकाभिरिव पद्मसरोवरपालिस्थितपुष्पवाटिकातुल्याभिः मुद्भिः आत्मज्ञानसमुद्भूतप्रमोदः, स्वातिबिन्दुपातजनित-मुक्ताफल-शालि-शुक्तिसम्पुटैरिव-स्वातिबिन्दूनां स्वातिनक्षत्रवृष्टाम्बुदाम्बुबिन्दूनां यः पात:=पतनं, तज्जनितानि यानि मुक्ताफलानि तैः शालन्ते शोभन्ते ये ते तथाभूता ये शुक्तिसम्पुटास्तैरिव तत्सदृशैः गणधरोपदेशवाक्य-जनित-स्वर्गापवर्गसुख-शालि-मुमुक्षुहृदयैःगणधराणां यत् उपदेशवाक्यम् भगवत्प्ररूपित-यथार्थ-तत्वोपदेशरूपं वचनं तजनितं यत् स्वर्गापवर्गसुखं तेन शालन्ते शोभन्ते यानि तानि तथाभूतानि यानि मुमुक्षुहृदयानि-मोक्षाभिलापिणां चित्तानि तैस्तथाभूतैश्च परिकरितोयुक्तः पद्मसरोवर इव विराजिष्यते शोभिष्यते । एवं पद्मसरोवर इवासावपि सकलजगजीवयोनिजातस्यनियों से युक्त होता है, उसी प्रकार वह पच्चीस विमल भावनाओं से युक्त होगा। जैसे सरोवर मकरन्दफूलों के रस से युक्त होता है, उसी प्रकार वह षटकाय के जीवों की करुणा से कलित होगा। जैसे सरोवर भ्रमर-समूह से युक्त होता है, उसी प्रकार वह भव्य प्राणियों के समूह से सेवित होगा। जैसे-सरोवर लहरों से व्याप्त होता है, उसी प्रकार वह इष्ट-अनिष्ट आदि में समताभाव से युक्त होगा। जैसे सरोवर हंस आदि पक्षियों से सेवित होता है उसी प्रकार वह साधुओं से सेवित होगा। जैसे सरोवर पाल पर स्थित पुष्पवाटिकाओं से शोभित होता है, उसी प्रकार वह आत्मज्ञानजनित प्रमोद से विभूषित होगा। जैसे सरोवर स्वातिनक्षत्र में बरसे जल को बिन्दुओं से उत्पन्न हुए मोतिओं से सुशोभित शुक्ति (सीप) से सम्पन्न होता है, उसी प्रकार वह तीर्थकरप्ररूपित यथार्थ तत्व का उपदेश करने वाले गणधरों के वचन से जनित स्वर्गमोक्ष के सुख से शोभित होने वाले मोक्षार्थी जीवों के हृदय से सुशोभित होगा। इस प्रकार, अर्थात्-पद्मयुक्त નાએ વાળે થશે. જેમ સરેવર મકરન્દ (ફૂલેના રસ) થી યુક્ત હોય છે તેમ તે છકાયના છની કરુણાથી યુક્ત થશે. જેમ સરોવર ભમરાઓના સમૂહથી સેવાયેલ હોય છે, તેમતે ભવ્યાના સમૂહથી લેવાયેલ હશે. જેમ સરવર લહેરોથી વ્યાપ્ત હોય છે તેમ તે ઈષ્ટ અનિષ્ટ આદિમાં સમતાભાવવાળે હશે. જેમ સરવર હંસ આદિ પક્ષીઓથી સેવાય છે તેમ તે સાધુઓ વડે સેવાશે. જેમ સરોવર કિનારે રહેલી પુષ્પવાટિકાઓથી શોભે છે, તેમ તે આત્મજ્ઞાન-જનિત પ્રમાદથી વિભૂષિત થશે, જેમ સરવર સ્વાતિનક્ષત્રમાં વર્ષેલાં જળના બિન્દુએ વડે ઉત્પન્ન થયેલ મતીઓ વાળી છીપ વડે યુક્ત હોય છે, એજ રીતે તે તીર્થંકર-પ્રરૂપિત યથાર્થ તત્વને ઉપદેશ કરનાર ગણધરના વચનથી થનાર સ્વર્ગ–મોક્ષના સુખથી શેભા
पद्म
सरोवरमए स्वमफलम्.
॥५०॥
શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૧