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________________ त्वम् ३१, साकारत्वम् ३२, सत्त्वपरिगृहीतत्वम् ३३, अपरिखेदित्वम् ३४, अव्युच्छेदित्वम् ३५, इत्येते ये पञ्चत्रिंशद् वाणीगुणास्तैः प्रतिपूर्णः, तथा-जगद्धदयहरणप्रवणः-जगतः संसारस्य हृदयहरणे हृदयाकर्षणे प्रवणः= तत्परः-सकलजीवहृदयाकर्षक इत्यर्थः, तथा-सकलतीथिकानाम् समस्तधर्मप्रवर्तकानां मूर्बोपरि मस्तके विराजमानः= शोभमानः-सकलधर्मप्रवर्तकश्रेष्ठ इत्यर्थः, तथा-सकलजनानाम् अभिलषणीयः श्लाध्यश्च भविष्यतीति ॥सू०३९॥ श्रीकल्पसूत्रे कल्पमञ्जरी टीका ॥४९७|| (३२) साकारत्व-वौँ, पदों और वाक्यों का पृथक्-पृथक् होना । (३३) सवपरिगृहीतत्व-प्रभावशाली एवं ओजस्वी वचन होना । (३४) अपरिखेदित्व-उपदेश देने में थकावट न होना । (३५) अव्युच्छेदिस्व-जब तक प्रतिपाद्य विषय की भलीभाँति सिद्धि न हो तब तक लगातार उस की प्ररूपणा करते जाना, अधूरा न छोडना। इन पैतीस गुणों से युक्त होने के कारण वह बालक लोक में अभिराम होगा-मुन्दर होगा, आनन्ददायक होगा। निर्मल कीर्ति से युक्त होगा। केवलज्ञान और केवलदर्शन से विभूषित होगा। जगत् का अर्थात् जगत् के जीवों का चित्त अपनी ओर आकर्षित करने में समर्थ होगा। संसार के समस्त धर्मप्रवर्तकों में मूर्धन्य होगा-अर्थात् श्रेष्ठ होगा। सब लोगों का इष्ट होगा और प्रशंसनीय होगा ॥मू०३९ ॥ पूर्णकलश स्वप्रफलम्. (३२) सारत्१-gी, पहो, भने पायानु म मा : (33) सत्यपरिगृहीतq-भावाणी भने मास्वी होवो. (३४) अपरिहित्य-उपदेश देता था नाni. (૩૫) અવ્યુ છેદિત્ય-જયાં સુધી પ્રતિપાદ્ય વિષયની સારી રીતે સિદ્ધિ ન થાય ત્યાં સુધી સતત તેની ५३५४। ये वी, अ५३ छ।७ नही એ પાંત્રીસ ગુણોવાળે હોવાને કારણે તે બાળક લોકમાં અભિરામ થશે. સુંદર થશે, આનંદદાયક થશે. નિમળ કીર્તિવાળે થશે. કેવળજ્ઞાન કેવળદર્શનથી વિભૂષિત થશે. જગતનું એટલે કે જગતના છાનું ચિત્ત પિતાની તરફ આકર્ષવાને સમર્થ થશે. સંસારના સર્વધર્મ પ્રવર્તકેમાં મૂર્ધન્ય (48) થશે. બધા લોકોને ઈષ્ટ થશે અને प्रशसनीय यशे (सू०३८) ॥४९७॥ શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૧
SR No.006381
Book TitleKalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size41 MB
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