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________________ कल्प श्रीकल्प सूत्रे ॥४८॥ मञ्जरी र टीका बाधारहितत्वात्, ध्रुवां-निश्चलत्वात, नियतां-निश्चितत्वात, शाश्वती-सर्वकालस्थायित्वात् , अधरीकृतलोकलक्ष्मीलोकोत्तरत्वात् अधरीकृता-तिरस्कृता लोकलक्ष्मीः त्रिभुवनलक्ष्मीः यया सा तथा तां तथाविधां मोक्षलक्ष्मी दास्यतीति ॥मू०३४॥ ५-दामदुगसुमिणफलं मूलम्-दामदुगदसणेणं अमू अगाराणगारधम्मदुगणिरूवणेणं भव्वे भूसिस्सइ १। अमंदा-णंद-जण- ग-नाणादिगुणेण तिहुयणसगलजणहिययंमि चिहिस्सइ २। आयगुणसोरहेण तिहुयणं सुरहिस्सइ ३। सयलजणणयणाणंदकरो य भविस्सइ ४॥०३५॥ ५-दामद्विकस्वप्नफलम् छाया-दामद्विकदर्शनेन असौ अगाराऽनगारधर्मद्विकनिरूपणेन भव्यान् भूषयिष्यति । अमन्दाऽऽनन्द-जनक-ज्ञानादि-गुणेन त्रिभुवनसकलजनहृदये स्थास्यति २। आत्मगुणसौरभेण त्रिभुवनं सुरभयिष्यति । होने से अक्षय, कर्मवाधारहित होने से अव्यावाध, निश्चल होने से ध्रुव, निश्चित होने से नियत, सर्वकालस्थायी होने से शाश्वत और लोकोत्तर होने से लौकिक लक्ष्मी को तिरस्कृत करने वाली ऐसी मोक्षलक्ष्मी को देगा॥ सू०३४ ॥ ५-मालायुगल के स्वप्नका फल मूल का अर्थ-'दामदुगदसणेणं' इत्यादि। दो मालाओं के देखने से वह, (१) दो धर्मों काअगारधर्म और अनगारधर्मका निरूपण करके भव्य जीवों को विभूषित करेगा, (२) तीव्रतर आनन्द के। जनक ज्ञान आदि गुणों के कारण तीन लोक के समस्त जनों के हृदय में स्थान बनाएगा, (३) अपने હોવાથી નિયત, સર્વ કાળથાયી હોવાથી શાશ્વત, અને લોકેાર હેવાથી લૌકિક લક્ષમીને તિરસ્કૃત કરનારી એવી मोक्षतभी देश. (सू०३४) ૫-માળાયુગલના સ્વપ્નનું ફળ भूजन म- “दामदुगदसणेण" त्याहि मे भाणाय नेपाथी ते (१) मे भानु-मगारथम भने અનગારધર્મનું નિરૂપણ કરીને ભવ્ય જીને વિભૂષિત કરશે. (૨) તીવ્રતર આનંદના જનક જ્ઞાન આદિ ગુણોને કારણે ત્રણ લેકના સમસ્ત જનોનાં હૃદયમાં સ્થાન જમાવશે. (૩) પિતાના આત્મિક ગુણોની સુગંધથી ત્રણે લેકને दामद्विक स्वमफलम्. Sta ॥४८॥ શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૧
SR No.006381
Book TitleKalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size41 MB
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