________________
श्रीकल्प
मृत्रे
कल्पमञ्जरी
॥४२२॥
टीका
aaHARA
संकल्पविकल्पात्मकमन्तःकरणविशेषः, हृदयं-चित्तं स्मरणविषयकमन्तःकरणविशेषः, तदुभयप्रहादिनीम्, भगवतीम् ऐश्वर्यादियुक्तां, विकसित-कमल- दला-क्षी-विकसिते प्रफुल्ले ये कमलदले कमलपत्रे ते इव अक्षिणी यस्यास्ताम्, लक्ष्मी लक्ष्मीदेवों पश्यति ॥मू०१८॥
५-पुष्फमालाजुयलसुमिणे मूलम्-तओ पुण सा सरस-णाग-पुण्णाग-पियंगु-पाडल-मंडिल-मल्लिया-णवमल्लिया-जूहिया-वासंतिया-कप्णिया-कुडज-कोरंटग-कुंद-कोज-कुरबक-कमल-बउल-बंधूग-चंपगा-सोग-मंदार-तिलय-क्रयणार-सहयारमंजरी-जाई-मालई-अमंद-सुगंध-बंधुरं मघमघायमाण-गंधु-दरं सरस-रमणिज्जा-णुवम-किण्ह-णील-पीयरत्त-सुकिल्ल-पंचवण्ण-सब्बोउय-सुरभि-कुसुम-विलसंत-कंत-भत्ति-चित्तं देवकुसुम-निम्मिय-पवित्त महु-लुद्धखुद्ध-निलीण-गुंजंता-लिपुंज-गुंजिय-प्पएसं गंधद्धणिजणयं सयल-जण-मण-हरण-धुरंधरेण सुरहिगंधेण दसवि दिसाओ आमोदयंत अंबरंगणतलाओ ओयरंतं विसालं पुष्फमालाजुयलं पासइ ॥मू०१९॥
५-पुष्पमालायुगलस्वप्नम् छाया-ततः पुनः सा सरस-नाग-पुन्नाग-प्रियङ्ग-पाटल-मण्डिल-मल्लिका-नवमल्लिका-यूथिका-वाससंकल्प-विकल्प वाले अन्तःकरण-मन को तथा स्मरण करनेवाले अन्तःकरण-हृदय को-दोनों को अत्यन्त आहाद प्रदान करनेवाली थी। ऐश्वर्य आदि से सम्पन्न तथा खिले हुए कमल पत्रों के सदृश-नेत्र वाली थी। ऐसी लक्ष्मी को देखा ॥मू०१८॥
५-पुष्पमालायुगल का स्वप्न मृल का अर्थ-'तओ पुण सा' इत्यादि। तत्पश्चात् त्रिशला देवी ने पुष्पमालाओं का एक युगल देखा। वह मालायुगल-सरस नाग, पुन्नाग, भियंगु, पाटल, मण्डिल, मल्लिका, नवमल्लिका, यूथिका, સરોવરમાં રહેલાં કમળમાં નિવાસ કરનારી. બધા લેકના સંકલ્પ-વિક૯પવાળાં અન્તઃકરણ-મનને તથા સ્મરણ કરનારા અન્તઃકરણ-હદયને-બન્નેને અત્યન્ત આનન્દ દેનારી હતી. ઐશ્વર્ય આદિથી સંપન્ન તથા વિકસિત કમળપત્રે જેવાં નેત્રવાળી હતી. એવી લક્ષમીને જોઈ (સૂ૦ ૧૮).
५-०५भाणा-युगलनुस्वप्न. भूगना --तो पुण सा' (त्या. त्यार पछी, त्रिशला राणी, मे सनी माणा जमा डा भाका). १२ 1, BIH. प्रिय'1. पाट. भलि. मल्सिst. नवममा यति वासति
पुष्पमालायुगलस्वामवर्णनम्.
SANELENDARIABLE
॥४२२
શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૧