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________________ श्रीकल्प सूत्रे ॥४१९॥ र टिकलोहिताक्षादीनि, विमलानि=स्वच्छानि महातपनीयानि-उत्तमस्वर्णानि च, तैः रचितानि=निर्मितानि भूषणानि= आभरणानि, तथा-हार-अष्टादशसरिका, अर्द्धहारः नवसरिकः, प्रयुक्तरत्नकुण्डले-पयुक्तानि जटितानि रत्नानि यत्र तादृशे कुण्डले रत्नजटितकुण्डलद्वयं, तथा-व्यामुक्तक-हेमजाल-मणिजाल-कनकजालानि-व्यामुक्तक-परिहितं यद् हेमजालं हेममाला, मणिजालं-मणिमाला, कनकजालंकनकमाला च तानि तथोक्तानि, हेमकनकयोः प्रकारगतो विशेषः, तथा सूत्रक-कटिसूत्रं, तिलकं ललाटे चन्दनादिकृतो विशेषकभेदः, फुल्लक-पुष्पाकृतिकललाटाभरणविशेषः, सिद्धार्थका स्वर्णमयः कण्ठाभरणविशेषः, कर्णवालिका कर्णोपरिभागे परिधीयमानः कर्णाभरणविशेषः, शशीचन्द्राकार आभूषणभेदः, सूर्यः सूर्याकार आभूषणभेदः, वृषभवक्त्रकंवृषभमुखाकार आभरणविशेषः, तलभङ्गक हस्ताभरणविशेषः, त्रुटित हस्ताभरणविशेषः, हस्तमालकम् आभरणविशेषः, हर्षः आभूषणविशेषः, केयूरम् हस्ताभरणविशेषः, वलयः कङ्कणम्, पालम्बः कण्ठाभरणविशेषः, अङ्गलीयक-मुद्रिका,बलाक्ष-कण्ठाभरणविशेषः, लक्ष्मीस्वन वर्णनम् . के बने हुए उसके आभूषण थे, तथा हार अठारह लडों का, अद्धहार नौ लड़ों का, रत्नजटित कुण्डलों की जोड़ी, धारण की हुई-हेममाला, मणिमाला, कनकमाला (यहाँ हेम और कनक दोनों सोने होने पर भी उनकी जाति में अन्तर है।) कटिसूत्र, तिलक (ललाट पर चन्दन आदि का बना हुआ), फुल्लक (फूल के आकार का एक ललाट का आभूषण) सिद्धार्थका (गले का सुनहरी गहना), कर्णवालिका (कान के उपरी भाग में पहना जाने वाला कान का गहना), शशी (चन्द्राकार आभूषण), मूर्य (सूर्य के आकार का आभूषण), वृषभवक्त्रक (बैल के मुख के आकार का आभूषण) तलभंगक (हाथ का गहना), त्रुटित (हाथ का गहना), हस्तामलक नामक आभूपण, हर्षनामक आभूषण, केयूर (हाथ का आभरण), वलय, कंकण, पालम्ब (कंठ का आभूषण), अंगूठी, ॥४१९॥ અર્થહાર નવ લટને, રત્નજડિત કુંડળની જોડી, ધારણ કરેલી હેમમાળા, મણિમાળા, કનકમાળા (અહીં હેમ અને કનક બન્ને સેનું હોવા છતાં પણ તેમની જાતમાં તફાવત છે) કટિસૂત્ર, તિલક (કપાળે ચન્દન વગેરેનું) કુહલક, (ફુલના આકારનું એક લલાટે પહેરવાનું ઘરેણુ) સિદ્ધાર્થિકા (ગળાનું સેનાનું ઘરેણું) કણવાળિકા (કાનના ઉપરના ભાગમાં પહેરવાનું કાનનું ઘરેણુ) શશી, (ચન્દ્રાકાર આભૂષણ) સૂર્ય (સૂર્યના આકારનું આભૂષણ), તલભંગિક (હાથનું ઘરેણું), વૃષભવત્રક (બળદનો મુખના આકારનું ઘરા), રૂટિત (હાથનું ઘરેણું). હસ્તામલક નામનું मालवा५. ३५२ (41य मानूषा). १mय-४, प्रालय (31st मानूपए) मही, साक्ष (31४ घरे) हाना२. શ્રી કલ્પ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006381
Book TitleKalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size41 MB
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