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________________ प्रतिहतं, निरावरणम् आवरणरहित-सर्वतः प्रद्योतमानमित्यर्थः, कृत्स्नं पूर्ण, प्रतिपूर्ण सर्वतोव्याप्तं, केवलवरज्ञानमा दर्शन-केवलं केवल' इति नाम्ना प्रसिद्धम्, यद्वा-केवलम् एकमात्रं-सजातीयद्वितीयरहितम्, वरं अतिश्रुत ज्ञानाद्यपेक्षया श्रेष्ठ ज्ञान दर्शनं च वैशाखशुक्लदशम्यां समुत्पन्नम् । स्वात्यां-कार्तिकामावास्यायां स्वातीनक्षत्रे मा परिनिवृतः-निर्वाणं प्राप्तो भगवान् । 'यावत् ' यावच्छब्देन भगवद्विहारादिकं भूयो भूयः पुनः पुनः उपदर्शयति= गौतमस्वामी कथयति स्म । इति एतत् हे जम्बूः ! त्वां यथा श्रुतं तथा ब्रवीमि कथयामि । इति ॥२०१॥ श्रीकल्प मृत्रे ॥१४३॥ कल्पमञ्जरी टोका आदि से निरुद्ध न होनेवाले, आवरणरहित अर्थात् संम्पूर्णरूप से भासमान, सम्पूर्ण और सर्वव्यापी केवल वर ज्ञान और दर्शन वैशाख शुक्ला दशमी को प्राप्त हुआ ५। केवल- केवल' नाम से प्रसिद्ध अथवा केवल का अर्थ-एक मात्र, जिसके साथ दूसरा कोई ज्ञान न हो, तथा वर का अर्थ है-मति, श्रुत आदि अन्य ज्ञानों की अपेक्षा श्रेष्ठ। केवलदर्शन की व्याख्या भी इसी प्रकार समझनी चाहिए। भगवान् का निर्वाण स्वाति-नक्षत्र में कार्तिकी अमावस्या को हुआ। मूल में जो ‘यावत्' शब्द है, उससे भगवान् के विहार आदि का ग्रहण करना चाहिए। यह कथन गौतम स्वामी ने पुनः पुनः किया। 'त्ति बेमि' सुधर्मा स्वामी जम्बस्वामी से कहते हैं- हे जम्बू ! जैसा मैंने सुना है, वैसा ही तुमसे कहता हूँ।मू०१॥ उपोद्घातः (221), ४८ (२८) भने ४४थ (4a) पोथी निधन यनार, आ१२४२हित, अर्थात् संपू३५ भासमान, संपू भने सव्यापी व १२ ज्ञान भने ४शन वैशाम सुह इशभे प्राप्त थयु. (५) १०-"केवल" नामयी પ્રસિદ્ધ, અથવા “કેવલ”ને અર્થ છે “એક માત્ર’, જેની સાથે બીજું કઈ જ્ઞાન હોય નહિ, તથા “વર ને અર્થ છે મતિ-શ્રત આદિ બીજાં જ્ઞાનની અપેક્ષાએ શ્રેષ્ઠ. કેવલ દર્શનની વ્યાખ્યા પણ એ જ પ્રમાણે સમજવી. ભગવાનનું નિર્વાણ સ્વાતિ નક્ષત્રમાં કાર્તિકી અમાસે થયું. મૂળમાં જે પાવન શબ્દ છે, તેથી ભગવાનનાં विहा२ मा ४२वां थन गोतम स्वामी धुनः पुनः यु. 'त्ति बेमि' सुधास्वामी भूस्वाभीने પણ કહે છે–હે જંબૂ ! જેવું મેં સાંળળ્યું છે તેવું જ તને કહું છું. (સૂ૦૧) ॥१४३॥ શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૧
SR No.006381
Book TitleKalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size41 MB
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