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श्रीकल्प
वा १३, यज्ञमण्डपं वा १४, शून्यगृह वा १५, श्मशानं वा १६, लयनं वा १७, आपणं वा १८, अन्य वा तथाप्रकारम् दकमृत्तिकाबीजहरितत्रसमाणासंसक्तं यथाकृतं मासुकम् एषणीयं विविक्तं स्त्रीपशुपण्डकरहितं प्रशस्तम् । यः खलु आधाकर्मबहुल: आसिक्तसम्मार्जितोपलिप्तशोभितच्छादनदुमनलेपनानुलेपनज्वलनभाण्डचालनसमाकुलः स्यात्, यत्र च अन्तर्बहिश्च असंयमो वर्द्धते, नो स कल्पते वस्तुम् ॥ मू०३७॥
टीका--'कप्पइ निगंथाणं वा' इत्यादि । निग्रन्थानां नग्रन्थीनां वा अष्टादशविधमुपाश्रयं तथा
सूत्रे
कल्पमञ्जरी
॥११३॥
टीका
१३ कुप्यशाला, १४ यज्ञमण्डप, १५ शून्यगृह, १६ श्मशान, १७ लयन, १८ आपण । इनके अतिरिक्त इसी प्रकार के सचित्त जल, मृत्तिका, बीज, वनस्पति एवं त्रस जीवों के संसर्ग से रहित, गृहस्थों द्वारा अपने स्वार्थ के लिए बनवाये हुए, मासुक, एषणीय, एकान्त, स्त्री, पशु और पंडक (नपुंसक) से वर्जित और प्रशस्त-निर्दोष उपाश्रय में रहना कल्पता है। जो उपाश्रय आधाकर्म से व्याप्त होता है तथा सिंचन, संमार्जनी से कचरा झाड़ना, जाले हटाना, घास बिछाना, पुताई करना, लेपन करना, सुन्दरता के लिए बार-बार गोबर आदि से लीपना, सर्दी दूर करने के लिए अग्नि जलाना, वरतन-भाडे इधर से उधर रखना आदि सावध क्रियाओं से युक्त होता है, और जहाँ भीतर-बाहर असंयम की वृद्धि होती है, ऐसे उपाथय में निवास करना नहीं कल्पता ॥ सू०३७ ।।
टीका का अर्थ-साधुओं और साध्वियों को अठारह प्रकार के उपाश्रयों में तथा उसी प्रकार के दूसरे उपाश्रय
(१४) यज्ञभ७५, (१५) शून्य. (१६) श्मशान, (१७) यन, (१८) आप मे id मे ना सथित જળ, માટી, બીજ, વનસ્પતિ, તેમ જ ત્રસ જીના સંસર્ગથી રહિત, ગૃહસ્થાએ પિતાને અર્થે બનાવેલા, પ્રાસક, मेषीय, सन्त, श्री-पशु-५'७४ (नस४) थी पति भने प्रशस्त-निहाप पाश्रयमा रहेषु ४६५ .२ 641શ્રય આધાકમથી શ્વાતું હોય તથા સિંચન, સંમાર્જનીથી કચરા વાળ, જાળાં દૂર કરવાં, ઘાસ બિછાવવું, પુતાઈ કરવી, લેપન કરવું, સુંદરતાને માટે વારંવાર છાણ વગેરેથી લીં‘પવું, શરદી દૂર કરવાને અગ્નિ સળગાવ, વાસણ-કુશણુ અહીંથી ત્યાં મૂકવાં, વગેરે સાવધ યિાએથી યુક્ત હોય અને જ્યાં અંદર-બહાર અસંયમની વૃદ્ધિ याय, शेषा पाश्रयमा निवास ४२वो पता नथी. (२०३७).
ટીકાને અર્થ-સાધુ-સાધ્વીઓને અઢાર પ્રકારના ઉપાશ્રયમાં તથા એ પ્રકારનાં બીજા ઉપાશ્રયમાં નિવાસ
શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૧