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________________ श्रीकल्प।।९९॥ नित्योदका नित्यस्यन्दना असेतुका, तत्र सर्वतः समन्ताद योजनमर्यादायां भिक्षाचर्यायै गन्तुं वा प्रतिनिवर्तितुं वा ।। मू०२८॥ टीका--'नो कप्पइ' इत्यादि । ग्रामे वा यावत् सन्निवेशे वा वर्षावास निवसतां निग्रन्थानां वा निर्ग्रन्थीनां वा, यदि तत्र ग्रामादौ नित्योदका-नित्यमुदकं यस्यां सा तथा-सजला, अत एव-नित्यस्यन्दना नित्यप्रवाहयुक्ता सती असेतुका सेतुवर्जिता भवेत्, तत्र ग्रामादौ सर्वतः समन्ताद् योजनमर्यादायां भिक्षाचर्यायैगन्तुं वा भिक्षामादाय प्रतिनिवर्तितुं वा नो कल्पते । सेत्वादियुक्ता यदि भवेत्, तदा तु कल्पते एवेति ॥मू०२८॥ भिक्षाचर्यानिषेधप्रस्तावात् सम्प्रत्यन्यमपि तथाविधं निषेधमाह-- कल्पमञ्जरी टीका सदा बहती रहती हो और जिस पर पुल न हो, तो वहाँ साधुओं और साध्वियों को एक योजन तक भिक्षा के लिए जाना और आना नहीं कल्पता ॥सू०२८॥ टीका का अर्थ-ग्राम यावत् सन्निवेश में वर्षावास में स्थित श्रमणों और श्रमणियों को, उस ग्राम आदि में यदि जल से परिपूर्ण, सदा बहने वाली और विना पुल की नदी हो तो भिक्षाचर्या के लिए एक योजन तक गमन-आगमन करना नहीं कल्पता। यदि पुल हो या नदी में पानी न रहता हो तो जाना कल्पता ही है ।मु०२८॥ भिक्षाचर्या में निषेध का प्रकरण होने से फिर भी निषेध कहते हैं-'नो कप्पइ' इत्यादि। રહેતી હોય અને જેની ઉપર પુલ ન હોય, તે ત્યાં સાધુ-સાધ્વીઓને એક જન સુધી ભિક્ષા માટે જવું અને मा ४६५तु नथी. (२०२८) ટીકાને અર્થ-ગ્રામ યાવત્ સંનિવેશમાં વર્ષાવાસમાં રહેલા શ્રમ અને શ્રમણીઓને, એ ગ્રામ આદિમાં જે જળભરી અને સદા વહેતી તથા પુલ વિનાની નદી હોય તે ભિક્ષા માટે એક જન સુધી ગમનાગમન કરવું ક૫તું નથી. જે પુલ હોય નદીમાં પાણી ન રહેતું હોય તે જવું ક૫ છે. (સૂ૦૨૮) मिक्षायामा निधनु ४२ डापाथी ३ ५ निषेध छ-'नो कप्पईत्यादि. ॥९९॥ શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૧
SR No.006381
Book TitleKalpsutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size41 MB
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