SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्थविरावली मूलम् जे अन्ने भगवंते कालियसुयअणुओगिए धीरे । ते पणमिऊण सिरसा, नाणस्स परूवणं वोच्छं॥५०॥ छायायेऽन्ये भगवन्तः कालिकश्रुतानुयोगिनो धीराः। तान् प्रणम्य शिरसा, ज्ञानस्य प्ररूपणां वक्ष्ये ॥५०॥ अर्थ:मैं पूर्वोक्त आचार्यों से अतिरिक्त जो आचार्य कालिकश्रुत के व्याख्यान करनेवाले, धीर और भगवान् (ऐश्वर्य सम्पन्न ) हैं, उन्हें मस्तक से प्रणाम कर ज्ञान की प्ररूपणा करूंगा, अर्थात् ज्ञानविषयक रचना करूंगा। इस लेख से यह बात स्पष्ट होती है कि नंदीमत्र देवर्द्धिगणीने नहीं रचा है, उन्होंने किसी अन्य ज्ञानविषयक ग्रंथ की रचना की है। इसका खुलासा इसी नंदीसूत्र की टीका में किया गया है । जिज्ञासु वहां से देख लें ॥५०॥ ॥ इति स्थविरावली सम्पूर्णा ॥ -: . શ્રી નન્દી સૂત્ર
SR No.006373
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size49 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy