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स्थविरावली अर्थःयहां (श्री महावीर स्वामीके शासनमें ) प्रथम गणधर इन्द्रभूति ( श्री गौतमस्वामी ) हैं, फिर दूसरे अग्निभूति हैं और तीसरे वायुभूति हैं बाद चौथे व्यक्तस्वामी हैं पांचमें श्री सुधर्मास्वामी है ॥ २२ ॥
मूलम्
मंडियमोरियपुत्ते, अकंपिए चेव अयलभाया य ।
मेयज्जे य पहासे ग
स्स ॥ २३ ॥
छायामण्डित-मौर्यपुत्रावकम्पितश्चैवाचल भ्राता च। मेतार्यश्च प्रभासो गणधराः सन्ति वीरस्य ॥ २३ ॥
अर्थःछट्टे मण्डित और सातमे मौर्यपुत्र गणधर हैं और ऐसे ही आठमे अकम्पित और नवमे अचलभ्राता गणधर हैं । दशवे मेतार्यस्वामी और ग्यारवे प्रभासस्वामी ये सब श्री महावीरस्वामी के गणधर हैं ॥ २३ ॥
मूलम्
स्वामी ये सब नाता गणधर हैं पत्र गणधर हैं और ऐसे ही
निव्वुइपह सासणयं, जयइ सयो सबभाव देसणयं ।
कुसमय मय नासणयं, जिणिंदवर वीर सासणयं ॥ २४ ॥
छायानिवृतिपथ शासनकं, जयति सदा सर्वभाव देशनकम् । कुसमय मद नाशनकं, जिनेन्द्रवरवीरशासनकम् ॥२४॥
अर्थमोक्षमार्ग का शासक सबपदार्थों का उपदेशक और कुसिद्धान्तों के अहङ्कार को नष्ट करने वाला जिनेन्द्रोंमें श्रेष्ट श्री महावीर स्वामी का शासन सर्वोत्कर्ष से सदा विराजता है ॥२४॥
શ્રી નન્દી સૂત્ર