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________________ ६२४ नन्दीसूत्रे कारेऽस्मिन् दृष्टिवादे प्रथमः प्रकारः कीदृशः ? इति पृच्छति-अथ किं तत् परिकर्म? इति। उत्तरयति-परिकर्मभूत्रादि ग्रहण-योग्यतासंपादनम् अवस्थितस्य वस्तुनो गुणाधान वा, तद्धेतुत्वात् शास्त्रमपि परिकर्मेत्युच्यते, तद्धि सप्तविधं प्रज्ञप्तम् , तद्यथासिद्धश्रेणिकापरिकम १, मनुष्यश्रेणिका परिकर्म २, पृष्टश्रेणिका परिकम ३, अवगाहनश्रेणिका परिकम ४, उपसंपादनश्रेणिका परिकर्म ५, विपहाणश्रेणिका परिकर्म ६, च्युताच्युतश्रेणिका परिकर्म च ७ इति । ____ अथ किं तत् सिद्धश्रेणिका परिकम ? इति प्रश्नः । उत्तरयति-सिद्धश्रेणिका परिकर्म चतुर्दशविधं प्रज्ञप्तम् , तद्यथा-मावकापदानि १, एकाथिकपदानि-एकसमस्त द्दष्टिवाद अंग प्रायः विच्छिन्न हो चुका है फिर भी जो कुछ उपलब्ध हुआ है उस पर कुछ लिखा जाता है शिष्य पूछता है-हे भदन्त! परिकर्म का क्या स्वरूप है ? उत्तर-सूत्रादिकों के ग्रहण करने की योग्यता का संपादन करना, अथवा अवस्थित वस्तु का गुणधान करना इसका नाम परिकर्म है। इस परिकर्म का हेतु होने से शास्त्र भी परिकर्म शब्द से व्यवहृत हो गया है। यह परिकर्म सात प्रकार का कहा है, जैसे-सिद्धश्रेणि का परिकम १, मनुष्यश्रेणि का परिकर्म २, पृष्टश्रेणि का परिकर्म३, अवगाढश्रेणि का परिकर्म ४, उपसंपादनश्रेणि का परिकर्म ५, विप्रहाणश्रेणि का परिकर्म ६ तथा च्युताच्युतश्रेणि का परिकर्म ७। अब शिष्य पूछता है-हे भदन्त ! सिद्धश्रेणिका परिकर्म का क्या स्वरूप है? । उत्तर-सिद्धश्रेणि का परिकर्म चौदह प्रकार का कहा गया है, वे વિચ્છિન્ન થઈ ગયું છે તે પણ જે કંઈ ઉપલબ્ધ થયું છે. તે વિષે થોડું લખવામાં આવે છે શિષ્ય પૂછે છે—હે ભદઃ પરિકર્મનું શું સ્વરૂપ છે? ઉત્તર–સૂત્રાદિકેને ગ્રહણ કરવાની યોગ્યતા પ્રાપ્ત કરવી અથવા અવસ્થિત વસ્તુના ગુણાધાન કરવા તેને પરિકમે કહે છે. આ પરિકમને હેતુ હેવાથી શાસ્ત્ર પણ પરિકર્મ શબ્દથી વ્યવહુત થઈ ગયું છે. એ પરિકમ સાત પ્રકારના २i -(१) सिद्धश्रेणिप२ि४ (२) मनुष्यश्रेणुिपरिभः, (3) पृष्ट श्रेणि५६२४भ', (४) 2Aqud श्रेणिपरिभ, (५) ३५साहन श्रेणि परिभ, (६) विप्राणिपरिभ, तथा (७) व्युताच्युतश्रेणिप२ि४भ, હવે શિષ્ય પૂછે છે-હે ભદન્ત! સિદ્ધ શ્રેણિકાપરિકર્મનું શું સ્વરૂપ છે? ઉત્તર–સિદ્ધ શ્રેણિકા પરિકર્મ નીચે પ્રમાણે ચૌદ પ્રકારનું કહેલ છે– શ્રી નન્દી સૂત્ર
SR No.006373
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size49 MB
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