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________________ स्थविरावली अर्थःतपः प्रधान संयमरूप मृगचिह्नवाले अक्रिय ( नास्तिकत्व ) रूप राहुमुखसे दुर्जय निर्दोष सम्यक्त्वरूप स्वच्छ चन्द्रिकावाले हे सङ्घरूप चन्द्र ! तूं सदा सर्वोत्कृष्ट हो ॥ ९॥ मूलम् परतित्थियगहपहनासगस्स, तवतेयदित्तलेसस्स । नाणुज्जोयस्स जए, भदं दमसंघसूरस्स ॥ १० ॥ छायापरतोर्थिक ग्रहप्रभा नाशकस्य, तपस्तेजोदीप्तलेश्यस्य । ज्ञानोद् द्योतस्य जगति, भद्रं दमसङ्घसूरस्य ॥ १० ॥ अर्थःपरतीर्थिक ( परदर्शनानुयायी ) रूप ग्रहों की प्रभा को नाश करनेवाले तपस्तेजरूप चमकदार लेश्या ( आत्मपरिणामविशेष ) वाले ज्ञानरूप प्रकाशवाले, दम ( इन्द्रियनिग्रह ) प्रधानक सफरूप सूर्यका जगत में कल्याण हो ॥१०॥ मूलम् भदं धिइ वेला परिगयस्त, सज्झाय योग मगरस्स । अक्खो हस्स भगवओ, संघसमुद्दस्त रुंदस्स ॥ ११ ॥ छायाभद्रं धृतिवेलापरिगतस्य, स्वाध्याययोगमकरस्य । अक्षोभस्य भगवतः, सङ्घसमुद्रस्य विस्तीर्णस्य ॥ ११॥ अर्थःधैर्यरूप वेला (जलवृद्धि ) से युक्त स्वाध्याययोग (स्वाध्याय रूप जलचरवाले) क्षोभ रहित और विस्तृत विस्तारवाले भगवान् सङ्घरूप समुद्र का कल्याण हो ॥११॥ શ્રી નન્દી સૂત્ર
SR No.006373
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size49 MB
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