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________________ ज्ञानचन्द्रिका टीका-अनक्षरश्रुतनिरूपणम्. यत्तु चक्षुषा आम्रफलादिकमुपलभ्य 'आम्रफलम् ' इत्याद्यक्षरानुगत शब्दार्थपर्यालोचनात्मकं विज्ञानं, तच्चक्षुरिन्द्रियलब्ध्यक्षरम् । एवं शेषेन्द्रियलब्ध्यक्षरमपि बोध्यम् । शिष्यः पृच्छति--' से कि तं' इति । अथ किं तदनक्षरश्रुतमिति । उत्तरमाह--'अणक्खरसुयं०' इत्यादि । अनक्षरात्मकम्-अक्षररहितं श्रुतम्-अनक्षरश्रुतम् , तत् अनेकविधं प्रज्ञप्तम् । तद् यथा-उच्चसितमित्यादि । उच्छ्वसितम्-उच्छ्वसनम् । निःश्वसितं-निःश्वसनम् । निष्टयूतं निष्ठीवनम् । कासितम्=कासनम् । च शब्दः समुच्चयार्थः । भुतं-क्षवणम्-'छीक' इति भाषाप्रसिद्धम् । निःसिवितम् निःसिवनम्-नासिकाजन्यः शब्दः, अनुसारः अनुसरणम्-अधोवायोनिस्सरणं, तज्जनितः श्रोत्रेन्द्रिय लब्ध्यक्षर है, कारण यह श्रोत्रेन्द्रिय के निमित्त से उत्पन्न हुआ हैं। आंख से आम्रफल आदि को देखकर जो ऐसा विचार होता है कि "यह आम्र का फल हे" यह चक्षुइन्द्रिय लब्ध्यक्षर है, क्यों कि “ यह आन का फल है" इस प्रकार के अक्षर से यह ज्ञान मिला हुआ है और इसमें शब्द एवं उसके अर्थ की पर्यालोचना हो रही है। इसी तरह से शेषइन्द्रिय लब्ध्यक्षर भी जान लेना चाहिये। फिर शिष्य पूछता है-'से किं तं अणक्खर सुयं०' इत्यादि । अनक्षररूप श्रुतज्ञान का क्या स्वरूप है ? उत्तर-अनक्षररूप श्रुतज्ञान अनेक प्रकार का बतलाया गया है-(१) उच्छ्वसित, (२) निःश्वसित (३) निष्ठयूत, (४) कासित, (५) क्षुत, (छींक) (६) नि:सिद्धित, (७) अनुसार, (८) खेलित, आदि (श्लेष्मित, चीत्कार आदि) ।नासिकाजन्य शब्द તે શ્રોત્રેન્દ્રિયના નિમિત્તથી ઉત્પન્ન થયું છે. આંખથી અમકુળ આદિને જોઈને જે એ વિચાર આવે છે કે “આ આમ્રફળ છે” એ ચક્ષુઈન્દ્રિયલધ્યક્ષર છે, કારણ કે “આ આમ્રફળ છે ” આ પ્રકારના અક્ષરથી આ જ્ઞાન મળેલું છે, અને તેમાં શબ્દ અને તેના અર્થની પર્યાલચના થઈ રહી છે. એ જ પ્રકારે બાકીની ઈન્દ્રિયોનું લધ્યક્ષર પણ સમજી લેવું. qजी शिष्य पूछे छ-" से कि तं अणक्खर सुयं" त्याहि. અનક્ષરરૂપ શ્રુતજ્ઞાનનું શું સ્વરૂપ છે उत्तर-मनक्ष२३५ श्रुतज्ञान मने ४२ मतान्यु छ-(१) २वसित (२) निःश्वसित, (७) नियूत, (४) सित, (५) क्षुत (छ), (६) नि:सिघित, (७) मनुसा२ (८) मेखित माहि (मत, यो२, मा6ि) नासिक શ્રી નન્દી સૂત્ર
SR No.006373
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size49 MB
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