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नन्दीसूत्रे ३-असाधारणम्-मत्यादिज्ञानरतुल्यत्वात् । ४-निरपेक्षम्-इन्द्रियाद्यपेक्षाया अभावात् । ५-विशुद्धम्-निरवशेषज्ञानदर्शनावरणायकर्ममलक्षयात् । ६-सर्वभावप्रज्ञापकम् – सर्वजीवादिभावभरूपकत्वात् ।
ननु केवलज्ञानं मूकं, तत् कथं प्ररूपकमुच्यते ? शब्दो हि प्ररूपणां कर्तुं शक्नातीति चेत् ?, उच्यते-उपचारात् प्ररूपकत्वं केवलज्ञानस्य सिध्यति । यतः केवलज्ञानदृष्टसर्वभावान् शब्दः प्ररूपयति, तस्मात् केवलज्ञानमेव प्ररूपकमिति मन्यते ।
२ समग्र-यह जिस प्रकार एक-जीव पदार्थ को सर्वथा रूपसे जानता है उसी प्रकार वह दूसरे पदार्थों को भी सर्वथा रूप से जानता है। किसी भी पदार्थ के जानने में इसमें न्यूनाधिकता नहीं है। इसलिये यह 'समग्र' है।
३ साधारण-मत्यादिक जो और ज्ञान हैं उनकी अपेक्षा यह विशिष्ट है, अद्वितीय है इसलिये यह 'असाधारण' है। - ४ निरपेक्ष इन्द्रियादिकों की सहायता से यह रहित है इसलिये 'निरपेक्ष' है।
५ विशुद्ध-समस्त ज्ञानावरण एवं दर्शनावरण कर्म के विगम (क्षय) से यह होता है अतः इसे 'विशुद्ध' कहा है। ___६ सर्वभावज्ञापक--यह समस्त जीवादिक पदार्थों का प्ररूपक है इसलिये यह 'सर्वभावप्रज्ञापक' है।
शंका-केवलज्ञान को तो मूक बतलाया गया है, फिर यह जीवादिक पदार्थों का प्ररूपक कैसे हो सकता है ?
(२) समग्रम में 4 पाथन सवथा ३५थी के सशत આ જ્ઞાન બીજા પદાર્થોને પણ સર્વથારૂપથી જાણે છે. કેઈપણ પદાર્થને જાણવામાં તેમાં ઓછા-વધુ પાણું નથી, તેથી તે સમગ્ર છે.
(3) असाधारण-भत्याहि २ भी ज्ञान छ तमना ४२di मा ज्ञान વિશિષ્ટ છે, અદ્વિતીય છે, માટે તે અસાધારણ છે.
(४) निरपेक्ष-न्द्रियाहिनी सहायता विनानुडपाथीत निरपेक्ष छ.
(५) विशुद्ध-सभस्त ज्ञाना१२६ मने दर्शनावर ४भना विराम (क्षय) થી તે ઉત્પન્ન થાય છે, તેથી તેને વિશુદ્ધ કહેલ છે.
(९) सर्वभावप्रज्ञापक- समस्त ONE पहनु ५३५४ छे तेथी ते સર્વભાવપ્રજ્ઞાપક છે.
શંકા-કેવળજ્ઞાનને તે મૂક દર્શાવ્યું છે તે તે જીવાદિક પદાર્થોનું પ્રરૂપક કેવી રીતે હોઈ શકે ?
શ્રી નન્દી સૂત્ર