________________
प्रियदर्शिनी टीका अ० ३६ देवानां कायस्थितिनिरूपणम्
अथ-देवानां कायस्थितिमाहमूलम्-जा चेव उ आउठिई देवाणं तु वियाहिया ।
सा तेसिं कायठिई, जहन्नमुक्कोसिया भंवे ॥२४४॥ छाया-या चैव तु आयुः स्थिति देवानां तु व्याख्याता ।
सा तेषां कायस्थितिः, जघन्योत्कृष्टिका भवति ॥२४४॥ टीका--'जा चेव उ आउठिई' इत्यादि
या यादृशी एव तु देवानामायुःस्थिति ाख्याताकथिता, सातादृशो, तेषां देवानां कायस्थितिर्जघन्या, उत्कृष्टिका च भवति ॥२४४॥
देवानामन्तरमाहमूलम्-अणंतकालमुक्कोस; अंतोमुहत्तं जहन्नयं ।
विजढम्मि सए कौए, देवाणं हुज अंतर्रम् ॥२४५॥ एएसिं वण्णओ चैव, गंधओ रसफांसओ।
संठाणदेसओ वावि, विहांणाइं सहस्संसो ॥२४॥ देवोंकी इस प्रकार आयुस्थितिका प्रमाण कहकर अब सूत्रकार उनकी कायस्थिति कहते हैं-'जाचेव उ' इत्यादि ___अन्वयार्थ-(जा एव) जैसी जघन्य और उत्कृष्ट (देवाणं-देवानाम) देवोंकी यह पूर्वोक्तरूपसे (आउठिई-आयुःस्थिति) आयुकी स्थिति कही गई है (सा एव-सा एव) वही (तेसिं-तेषाम्) उनकी (जहन्नमुक्कोसिया कायठिई भवे-जघन्योत्कृष्टिका कायस्थितिः भवति) जघन्य और उत्कृष्टरूपसे कायस्थिति जाननी चाहिये।
भावार्थ--जो इनकी जघन्य और उत्कृष्ट आयु कही गई है वही इनकी जघन्य और उत्कृष्ट कायस्थिति है ।। २४४ ॥
દેવેની આ પ્રકારે આયુસ્થિતિનું પ્રમાણુ કહીને હવે સૂત્રકાર તેમની आयस्थिति हे छ-"जाचेव उ" त्याह!
स-याथ-जा एव-या एव २वी ४धन्य मन अट देवाणं-देवानाम हेवानी ! पूर्वरित ३५थी आउठिई-आयु स्थितिः मायु स्थिति ४ाई छ. सा एव-सा एव त तेसिं- तेषां तेनी जहन्नमुक्कोसिया कायठिई भवे-जघन्योत्कृष्टिका कायस्थितिः भवति धन्य माने Gष्ट ३५थौ यस्थिति तयुपी ने मे
ભાવાર્થ-જે તેની જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટ આયુ બતાવેલ છે તે તેની જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટ કાયસ્થિતિ છે. હું ૨૪૪ છે
उत्तराध्ययन सूत्र:४