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________________ मियदशिनी टीका अ० ३६ त्रीन्द्रियजीवनिरूपणम् अथ त्रीन्द्रियजीवानाहमूलम्-तेइंदिया उ जे जावा दुविहा ते पंकित्तिया । पज्जत्तमपंज्जत्ता, तेसिं भेएं सैंणेह में ॥१३७॥ कुंथु पिवालि उड्डेसा, उकलुंदेहिया तहा। तणहारा कहाँरा यं, माटुंगा पत्तहारगी ॥१३८॥ कप्पासद्विमिंजा ये, तिढुंगा तउंसभिंजिगा । सयाँवरी य गुम्मी य, बोधेव्वा इंदकाईया ॥१३९॥ इंद गोवंगमाईया, गहाँ एवमीयओ। लोगेगैंदेसे ते सव्वे, न सव्वत्थ वियाहियों ॥१४॥ संतइं पैप्पणाईया, अपज्जवसिया विर्य । ठिई पडुच्च साईया, सपज्जैवसिया विय ॥१४१॥ एगूर्णपण्णहोरत्तों, उक्कोसेण वियाहिया। तेइंदिय आउँठिई अंतोमुहुत्तं जहनिया ॥१४२॥ संखिज्जकालमुक्कोसा, अंतोमुहत्तं जहन्निया । ते इंदिय कार्यठिई, तं कायं तु अमुंओ ॥१४३॥ अणंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । तेइंदियजीवाणं, अंतरेयं वियाहियं ॥१४॥ एएसिं वण्णओ चैव, गंधओ रसफोसओ। संठाणदेसओ वाँवि, विहाणाइं सहस्सँओ ॥१४५॥ छाया-त्रीन्द्रियास्तु ये जीवाः, द्विविधास्ते प्रकीर्तिताः । पर्याप्ता अपर्याप्ताः, तेषां भेदान् शृणुत मे ॥ १३७॥ कुन्थु पिपीलिकोदंशाः, उत्कालिका उद्देहिकास्तथा । तृणहाराः काष्ठहाराः, मालुकाः पत्रहारकाः ॥ १३८ ॥ कार्पासास्थिमिञ्जाश्च, 'तिन्दुकास्त्रपुषमिञ्जिकाः । सदावरी च गुल्मी च, बोद्धव्या इन्द्रकायिकाः ॥ १३९ ॥ इन्द्रगोपकादिका अनेकधा एवमादयः । लोकैकदेशे ते सर्वे न सर्वत्र व्याख्याताः ॥ १४० ॥ उत्तराध्ययन सूत्र :४
SR No.006372
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size55 MB
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