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________________ ८२६ उत्तराच्ययनसूत्रे " आहारसरीरेंदिय उस्सासवओ मणोभिणिव्वत्ती। होइ जओ दलियाओ करणं पइ सा उ पज्जत्ति ॥ छाया-आहार शरीरेन्द्रियोच्छ्वास वचो मनोऽभिनिवृत्तिः। भवति यतो दलिकाकरणं प्रति सैव पर्याप्तिः ॥इति । तत्राहारशरीरेन्द्रियोच्छ्वासरूपं पर्याप्तिचतुष्टयं पृथिवीजीवानाम् , 'तु' इति निश्चये बोध्यम् ॥७१॥ पुनरेषामेवोत्तरभेदानाहमूलम्--बायरों जे उ पजत्ता, दुविहा ते वियाहिया। सहा खंरा ये बोधव्वों, सण्ही सत्तविहा तहिं ॥७२॥ _ छाया-बादरा ये तु पर्याप्ता, द्विविधास्ते व्याख्याताः। ___श्लक्ष्णाः खराश्च बोद्धव्याः, श्लक्ष्णाः सप्तविधास्तत्र ॥७२॥ टीका-ये तु पर्याप्ता बादरा बादराख्यपृथिवी जीवाः ते द्विविधा व्याख्याताः, तद्यथा-श्लक्ष्णाः, खराश्चेति । तत्र-श्लक्ष्णा चूर्णितलोष्टकल्पा मृदुः पर्याप्तिसे जो रहित हैं वे अपर्याप्त जीव हैं । उक्तं च "आहार सरीरेंदिय उस्सासवओ मणोभिणिव्वत्ती। होइजओ दलियाओ करणं पइसा उ पज्जत्ती।" एकेन्द्रिय जीवोंके-आहार, शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्छ्वास ये चार पर्याप्तियां होती हैं। अतः एकेन्द्रियों में अन्तर्भूत होनेके कारण इन पृथिवीजीवोंके भी ये ही चार प्राप्तियां होती हैं ॥७१॥ अब इन्हींके उत्तर भेदोंको कहते हैं-'बायरा' इत्यादि । अन्वयार्थ-(जे उ पज्जत्ता बायरा-ये तु पर्याप्ताः बादाः) जो बादर पर्याप्त पृथिवी जीव हैं (ते दुविहा वियाहिया-ते द्विविधा व्याख्याताः) पातिथी २ २हित छ त पर्यात १ छ. उक्तंच " आहार सरीरेदिय, उ स्सासवओ मणो भिणिव्वत्ती। होइ जओ दलियाओ, करणं पइसा उ पज्जत्ती"॥ એકેન્દ્રિય જીના આહાર, શરીર, ઇન્દ્રિય શરીર, શ્વાસોચ્છવાસ એ ચાર પર્યાપ્તિ થાય છે. આથી એકેન્દ્રિયમાં અન્તભૂત થવાના કારણે એ પૃથવી જીવોની પણ આ જ ચાર પર્યાપ્તિ થાય છે. ૭૧ છે वे साना उत्तर महान ४ —“ बायरा" त्यादि। भ-क्यार्थ-जे उ पज्जत्ता बायरा-ये तु पयाप्ताः बादराः २ मा पर्याप्त पृथवी ०१ छे. ते दुविहा वियाहिया-ते द्विविधाः व्याख्याताः ते मे प्राना उत्तराध्ययन सूत्र : ४
SR No.006372
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size55 MB
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